Book Title: Sramana 2005 01
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 277
________________ छाया: साधु-धनेश्वर-विरचित-सुबोध-गाथा-समूह-रम्या। रागाग्नि-द्वेष-विषधर-प्रशमन-जल-मंत्र-भूता ॥२४९।। अर्थ :- साधु धनेश्वरसूरि वड़े विरचित सुखेथी बोध आपनारी गाथाना समूहथी रम्य रागरूपी अग्नि अने द्वेष रूपी विषधर ने शमाववा माटे पाणी अने मंत्र समान - हिन्दी अनुवाद :- साधु धनेश्वरसूरि से विरचित सुखावबोध, गाथा के समूह से रम्य, राग रूपी अग्नि और द्वेष रूपी विषधर का शमन करने के लिए पानी और मन्त्र समानगाहा : एसोवि परिसमप्पइ विरहे सूरुग्गमोत्ति सुपसिद्धो। सुर-सुंदरि-नामाए कहाए तइओ परिच्छेओ ।। २५०।। छाया :• एषोऽपि परिसमाप्यते विरहे सूर्योदगमरिति सुप्रसिद्धः। सुर-सुन्दरि-नाम्ना-कथायाः तृतीयः परिच्छेदः ।।२५०।। अर्थ :- सूर्यनो उदयथयो ए प्रमाणे सुप्रसिद्ध सरसुन्दरि नामनी कथानो आ तृतीय परिच्छेद पण विरहमां समाप्त कराय छे । हिन्दी अनुवाद :- सूर्योदय तक सुप्रसिद्ध सुरसुन्दरि नाम की कथा का यह तृतीय परिच्छेद भी विरह में समाप्त होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 275 276 277 278 279 280