Book Title: Sramana 2005 01
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 276
________________ हिन्दी अनुवाद :तब पूर्व दिशा किंशुक फूल एवं तोते के चोंच की तरह रक्तवर्णी हो गई और सूर्यमण्डल पास में ही है मानो ऐसा लोगों से कहती थी । गाहा : पडिबोहिय कमल - वणो पसरिय-खर किरण पूरिय- दियंतो । मेलिय-रहंग- जुयलो तदणंतरमुग्गओ सूरो ।। २४७ । । छाया : प्रतिबोधित -कमल-वनो प्रसृत कर-किरण- पूरितदिगन्तः । मिलित- रथाङ्ग-युगल-तदन्तरमुद्गतः सूर्यः ।। २४७ ।। अर्थ :- कमलना वनने जगाडनार, फेलायेला किरणोना तेजथी दिशाओने भरनार, चक्रवाकना युगलने मेलाप करावनार सूर्य तरत ज उदय पाम्यो । हिन्दी अनुवाद :- कमलवन को जागृत करनेवाला, विस्तृत किरणों के तेज से दिशाओं को प्रकाशित करनेवाला, चक्रवाक का मिलन करानेवाला सूर्योदय तुरन्त ही हो गया। गाहा : एत्थंतरम्मि अहयंपि समुट्ठिऊण भो सुप्पट्ठ ! तइया दइयाइ होही छाया : किच्चं पभायतणयं करिउं पयत्तो । संदंसणम्ह वह पट्टि - मणो पगामं ।। २४८ ।। अत्रान्तरे अहमपि समुत्थाय कृत्यं प्राभातिकं कर्तुं प्रवृत्तः । भो सुप्रतिष्ठ! तदा दयितायाः भविष्यति Jain Education International सद्दर्शन - मस्माकमिति प्रहृष्ट-मनः प्रकामं ।। २४८ ।। अर्थ :एटलामां. हुं पण उठीने करवा योग्य प्राभातिक कार्य करवा माटे प्रवृत्त थयो अने हे सुप्रतिष्ठ! सत्दर्शन अमने पण थशे आथी त्यारे मारू मन पण अत्यंत खुश हतु । हिन्दी अनुवाद :इतने में मैं भी उठकर सुबह का नित्यकार्य सम्पादित करने में प्रवृत्त हुआ और हे सुप्रतिष्ठ! प्रिया का दर्शन मुझे आज होगा, इस आशा से मेरा दिल भी अत्यन्त प्रसन्न था । गाहा : साहु-धणेसर - विरइय- सुबोह- गाहा - समूह - रम्माए । रागग्ग-दोस - विसहर पसमण जल- मंत- भूयाए ।। २४९ ।। 133 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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