Book Title: Sramana 2005 01
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 270
________________ अर्थ :- निष्ठुर किरणो वड़े भुवनने संताप आप्यो छे। एवा शेषथी अस्ताचल वड़े पोताना मस्तक परथी सूर्य ने नीचे धकेली दीधो होय, तेवु लागे छे । हिन्दी अनुवाद :- ऐसा लगता है कि सूर्य ने अपने निष्ठुर किरणों से भुवन को संताप दिया है, इसी कारण क्रोध से अस्ताचल पर्वत ने अपने ऊपर आये हुए सूर्य को नीचे फेंक दिया। गाहा : नाऊण सूर- पडणं अणुलग्गा उवरि अत्थ-सेलस्स । रोसेणव रत्त-मुहा समागया झत्ति अह संझा ।। २२९।। छाया : ज्ञात्वा सूर-पतन-मनुलग्ना उपरि अस्त-शैलस्य। रोषेणेव रक्त-मुखा समागता झटिति अथ सन्ध्या ||२२९।। अर्थ :- अस्तगिरि उपर सूर्यना पतनने जाणीने जाणे रोषथी लाल चोळ मोठावाळी थई होय तेम जल्दीथी सन्ध्या आवी - हिन्दी अनुवाद :- अस्ताचल पर्वत से सूर्य के पतन को देखकर सन्ध्या जैसे क्रोध से लाल होकर शीघ्र आ गयी । गाहा : तयणंतरमंधारिय दिसि-वलया नवरि आगया रयणी। पयडिय-तारय-निवहा कोसिय-हुंकार भीसणया ।। २३०।। छाया : तदनन्तर-मन्धारित दिशि-वलया नवर्यागता रजनी । प्रकटित तारक-निवहा कौशिकहुंकार भीसणता ||२३०।। अर्थ :- त्यारपछी तरत ज दिशा वलयोने अंधारी करती रात्री आवी। ते रात्रीमा ताराओ प्रकाशित हता अने घुवडना अवाज थी भयंकर लागती हती। हिन्दी अनुवाद :- उसके बाद तत्काल ही दिशा वलयों को अंधकारमय बनाती हुई रात्रि आयी, उस रात्रि में तारागण प्रकाशित हो रहे थे और उल्लू की अवाज भयंकर लगती थी। गाहा : ताव य खणंतराओ निन्नासिय-बहल-तिमिर-संघाओ। माणिणि-माणुम्महणो वित्थरिओ ससि-कर-निहाओ ।। २३१।। 127 127 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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