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श्रमण, वर्ष ५६, अंक १-६/जनवरी-जून २००५
विष्णु मन्दिरों के पास जैननाथ और पार्श्वनाथ के मन्दिर बनाने की अनुमति प्रदान करके अपनी धार्मिक उदारता एवं सहिष्णुता का परिचय दिया। अजमेर और नडुल के चाहमान शासकों ने जैन धर्म को काफी संरक्षण प्रदान किया। सी०वी० वैद्य के अनुसार ग्यारहवीं-बारहवीं शताब्दी में राजस्थान, गुजरात, मालवा, कच्छ, काठियावाड में जैनधर्म का काफी प्रचार हुआ३० जो विभिन्न आचार्यों एवं हेमचन्द्र द्वारा किये गये सद्कार्यों का फल था। सन्दर्भ : १. ऋग्वेद, १.८९.६. २. अथर्ववेद, ११.५.२४-२६, गोपथ ब्राहमण, २.८. ३. , प्रा० भा० सा० इति०, जयशंकर मिश्र, प्र०सं०, पृ० ६६६.
आन युवानच्वांग ट्रेवेल्स इन इंडिया, टामस वाटर्स, जि० १, पृ० २५. भारतीय संस्कृति का विकास, मथुरालाल शर्मा, पृ० २६४. लोकतत्त्वनिर्णय, श्लोक ३२-३३, देखिये, शर्मा, अ० चौ०डा०, पृ० २४९. सम्बोध-प्रकारण, हरिभद्रसूरि, श्लोक २७, ३४, ४६, ४९, ६१, ६३, ६८ इत्यादि। हरिभद्रसूरि की प्रमुख पुस्तकों के नाम इस प्रकार हैं - समराइच्चकहा, धूर्ताख्यान, द्विजवनचेपटा स्वोपज्ञ वृत्ति सहिता, अनेकान्तजयपताका, अनेकान्तवाद-प्रवेश, आवश्यकसूत्रवृहद्वृत्ति, दशैवकालिकसूत्रवृत्ति, नन्दीसूत्रवृत्ति, अनुयोगद्वारसूत्रवृत्ति, अष्टकप्रकरण, उपदेशप्रकरण, पंचाशकप्रकरण, लोकतत्त्वनिर्णय, शास्त्रवार्तासमुच्चय, सम्बोधप्रकरण, योगबिन्दु, योगदृष्टिसमुच्चय, षड्दर्शनसमुच्चय, न्याय-प्रवेशसूत्रवृत्ति, धर्मबिन्दु, धर्मसंग्रहणी।
उपमितिभवप्रपंचकथा तथा कुवलयमालकहा का लेखक था। १०. भारत और मुस्लिम आक्रमण, कल्पनाथ शास्त्री, पृ० १२१, वैद्य, सी०वी०,
हि० मे०हि० इ०, जि० ३ पृ० ४११. ११. द स्ट्रगल फार एम्पायर, मजूमदार, पृ० ४२६. १२. आर्कियोलाजी ऑफ गुजरात, पृ० २३५. १३. भारतीय विद्या, १.७३, हिन्दी। १४. खरतरगच्छ पट्टावली, इण्डियन हिस्टोरिक्ल क्वार्टी, दशरथ शर्मा, भाग ११,
पृ० २४८.
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