Book Title: Sramana 2005 01
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 267
________________ छाया : एवं चूतलतया भणितं श्रुत्वा तस्या वृत्तान्तम् । द्विगुणतरो मे जातः तद्विरहे गुरू-संतापः । । २१९ ।। अर्थ :- आ प्रमाणे चूतलताए कहेला तेणीना वृतान्तने सांभळीने तेणीना विरहमां द्यणो संताप थतो हतो ते बमणो थई गयो । उनके विरह द्वारा वृत्तान्त को सुनकर हिन्दी अनुवाद :- इस प्रकार चूतलता में जो संताप हो रहा था वह दुगुना हो गया। गाहा :- चित्रवेगनी संतापयुक्त विचारणा - जइ मरिही सा बाला कहवि हु गुरु विरह - ताविया हंदि ! | निमित्तेणं ता मज्झवि आगयं एएण छाया : यदि मरिष्यति सा बाला कथमपि खलु गुरूविरह-तापिता हत? | एतेन निमित्तेन तस्मात् म माप्यागतं मरणम् ||२२०।। अर्थ :- अरे ! जो भारेविरह थी पीडाती ते बाला केमे करीने पण मरशे तो ए निमित्ते मारे पण मृत्यु आवशे । हिन्दी अनुवाद :- अरे! अत्यंत विरहाग्नि से जलती उस बाला की यदि मृत्यु होगी तो उसी कारण से मेरी भी मृत्यु होगी। मरणं ।। २२० ।। गाहा : अहवा सिणेह - जुत्ता जइ सा ता कीस मज्झ पडिवयणं । नवि दिन्नं, ता मन्त्रे मंद- सिणेहा उ मह उवरिं । । २२१ । । छाया : अथवा स्नेह युक्ता यदि सा ततः कस्मात् मह्यं प्रतिवचनम् । नापि दत्तं, ततः मन्ये मंदस्नेहा तु ममोपरि ।।२२१ ।। अर्थ :- अथवा जो ते मारा अपर प्रेमवाळी छे तो शा कारणथी तेणीए मने उत्तर पण न आप्यो, आथी हुं मानु छं के ते मारा पर मन्दस्नेहवाळी छे । हिन्दी अनुवाद :- अथवा यदि वह मुझसे प्रेम करती है तो उसने किस कारण से मुझे मेरे पत्र का प्रत्युत्तर भी नहीं दिया। इससे मैं मानता हूँ कि वह मुझसे कम स्नेह करती है। गाहा : जइवि हु सा निन्नेहा तहवि मणं मज्झ तीए विरहम्मि । जलिय - जल- समुज्जल- जालालिद्धंव Jain Education International 124 For Private & Personal Use Only पडिहाइ ।। २२२ ।। www.jainelibrary.org

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