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गाहा :
तीए भणियं कन्ना अहंति कह मज्झ पिययमो भद्दे !? ।
मे भणियं नणु हो ही अह सा अफुडक्खरं भणइ ।।२१३।। छाया :
तया भणितं कन्या अह-मिति कथं मम प्रियतमो भद्रे ?|
मया भणितं ननु भविष्यति अथ सा अस्फुटाक्षरम् भणति।।२१३|| अर्थ :- ते वखते तेणीए कहा, “हे भद्रे! हुं कन्या छु मारो प्रियतम केवी रीते?" त्यारे मे कहयु “निश्चे थशे"| आथी ते अस्पष्ट अक्षरमां बोली। हिन्दी अनुवाद :- उस समय उसने कहा - "हे भद्र ! मैं कन्या हूँ तो फिर क्या वह मेरा प्रियतम बनेगा तब मैंने कहा - "निश्चित बनेगा' इसपर वह कुछ अस्पष्ट शब्दों में बोली। गाहा :- कह मामि ! अउन्नाए एत्तियमेत्ताणि मज्झ पुन्नाणि ।
जं सो भत्ता होही दंसणमित्तंपि अइदुलहं ।। २१४।। छाया :
कथं मामि! अपुन्यायारेतावत् मात्रेण मम पुन्यानि |
यत् स भर्ता भविष्यति दर्शनमात्रमपि अतिदुर्लभम् ।।२१४।। अर्थ :- हे सखि! मारा जेवी अभागी® एवु पुण्य क्याथी ? जेना दर्शनमात्र पण अतिदुर्लभ छे ते मारो पति केवी टीते बनशे ? हिन्दी अनुवाद :- हे सखि! मेरे जैसी अभागिनी का ऐसा पुण्य कहाँ ? जिसका दर्शन मात्र भी अतिदुर्लभ है, वह मेरा पति कैसे बनेगा ? गाहा :
एत्तियमेत्तं भणिउं अंसु-जलुप्फुण्ण-लोयणा झत्ति । नीसासं मोत्तूणं गय-चेट्ठा सा पुणो जाया ।। २१५।।
छाया:
एतन्मात्रं भणित्वा अश्रुजलपूर्ण-लोचना झटिति ।
निःश्वासमुक्त्वा गतचेष्टा सा पुनः जाता ||२१५।। अर्थ :- आटलु मात्र कहीने अश्रुजलथी पूर्ण लोचनवाळी जल्दीथी निसासो मूकीने फटी ते मूर्छित थई गयी ।। हिन्दी अनुवाद :- मात्र इतना कहकर अश्रुजन से पूर्ण लोचनवाली वह शीघ्रता से निःश्वास छोड़कर पुन: मूर्छित हो गई। ६. सखि ना आमन्त्रणमा
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