Book Title: Sramana 2005 01
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 234
________________ अपिच उद्दाम वाद्यमानात्यंत- वर-मर्दलं छाया : चर्चरी - शब्दाक्षिप्त-कामुक - जनं पटहिका-शब्द-नृत्यत् - बहु- वामनम् ।।११५।। अर्थ :वळी पण जोशी वागी रहेला अत्यंत श्रेष्ठ मृदंगो वाळु मदोनमत्त श्रेष्ठ स्त्रीओना समुदायथी करायेला छे। आनंदनी ध्वनी वाळु चर्चरीना शब्दोथी खेंचाईने आवेला कामी लोकोना समुदाय वाळु अने नगाराना शब्दोनी साथे नाची रहेला घणा वामन वाळु उद्यान छे । हिन्दी अनुवाद :- अतिजोश से बजते श्रेष्ठ मृदंग से युक्त, मदनमत्त स्त्री समूह द्वारा प्रगट की हुई आनन्द की ध्वनिवाला, चर्चरी के शब्द से आकृष्ट कामुकलोकवाला और नगाड़ों के शब्द से नृत्य करते अनेक वामनवाला उद्यान था। गाहा : पिययमासंत्त - नर - रुद्ध- कयली - हरं छाया : मत्त-वरर- कामिनी - संघ - कृत - गुंदल सविड- वेसा - जणारद्ध - जल- कीडयं प्रियतमासक्त-नर- रुद्ध-कदलीगृहं गाहा : दोलिया - रूढ-पुर- बालिया - सुंदरं 1 सविट-वेश्याजनारब्द्ध-जल-क्रीडकं २. उप्पीलयं - सलिल - संपाय- कय- कद्दमुप्पीलकम' ।। ११६।। सलिल संपात - - कृत-कर्दमुप्पीलकम् ।।११६।। अर्थ :- प्रियतमामां आसक्त मनुष्यों द्वारा अवरोध करायेलु, कदलीगृहवाळु, हिंचका ऊपर चढेली नगरनी बालिकाओथी सुंदर, लज्जा उत्पन्न करनार वेश्या जनथी प्रारंभ करायेली जल-क्रीडा वाळा लीला सहित कादव थी खरडायेला शरीरवाळा लोको हता! हिन्दी अनुवाद :प्रियतमा में आसक्त मनुष्यों द्वारा अवरुद्ध कदलीगृह वाला, झूलने पर आरूढ़ हुई नगरबालिकाओं से सुन्दर, लज्जा उत्पन्न करने वाली वेश्याजन से आरम्भ की हुई जल-क्रीड़ा थी, तथा मिट्टी के लेप से लिपा हुआ उद्यान था । दोलारूढ पुर- बालिका सुन्दरम् I Jain Education International 1 तं मज्झे पविसित्ता दट्ठूण रईए संजुयं मयणं । निग्गंतूणं दोण्णिवि उवविट्ठा वार- वेईए ।। ११७ । । दे० ० समूह 91 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280