Book Title: Sramana 2005 01
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 260
________________ छाया: अथ भणति भानुवेगो वयमपि खलु नैव जानीमः किञ्चित् । तस्मात् भणति सोमलता सासूयं इदृशं वचनम् ।।१९७।। अर्थ :- हवे भानुवेग कहे छे “अमेपण निश्चे कांइ जाणता नथी"। तेथी सोमलता असूयासहित आवा वचन कहे छ। हिन्दी अनुवाद :- अब भानुवेग कहते हैं “हम भी इस विषय में कुछ नहीं जानते', इसपर सोमलता आँसू बहाती हुई इस प्रकार बोलने लगी। गाहा : हरिऊण तीए हिययं दिट्ठी-बाणेहिं पहरियं अंगे । तुडि-गय- जीयं काउं तं संपइ अयाणुओ जाओ।। १९८।। छाया: हृत्वा तस्या हृदयं दृष्टि-बाणै प्रहत्या-ङ्गानि । त्रुटि-गत-जीवं कृत्वा तं सम्प्रति अज्ञातो जातः।।१९८|| अर्थ :- दृष्टिरूपि बाणो वड़े तेणीनुं हृदय चोरीने, अंगो पर प्रार करीने, प्राणने शंसयमां मूकीने हवे हमणा तमे अज्ञात थाओ छो ! हिन्दी अनुवाद : - "दृष्टिरूप बाण से उनका दिल चुराकर, अंगों पर प्रहार कर, प्राण को संकट में डालकर अब आप अन्जान बन रहे हो? गाहा : कंठ-गय जीवियासा तुह विरहे मरइ नत्थि संदेहो। अयणतं अवलंबिय तं चिट्ठसि निद्दओ भद्द ! ।। १९९।। छाया : कण्ठ-गत जीविताशा तव विरहे म्रियते नास्ति सन्देहः । अजनत्व-मवलम्ब्य त्वं तिष्ठसि निर्दयो हे भद्र ! ।।१९९।। अर्थ :- कंठमा रहेला प्राणवाळी, तारी आशामा जीवनारी ते तारा विरहमां निश्चे मृत्यु पामशे तेमां कोई संदेह नथी। वळी तुं पशुपणानुं आलंबन लईने निर्दयएवो रहयो छे।। हिन्दी अनुवाद :- कण्ठ में रहे हुए प्राणवाली, तेरी आशा में जीनेवाली, वह तेरे विरह में निश्चित मृत्यु को प्राप्त होगी, इसमें कोई संदेह नहीं है और तूं पशुत्व का आलंबन लेकर निर्दयी बन गया है। गाहा :- अन्नं च जो जत्थ जणो निवसइ रक्खइ सो आयरेण तं गेहं । तीए मणम्मि वसंतो किं निद्दय ! तं मणं दहसि ? ।। २००।। 117 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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