Book Title: Sramana 2005 01
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 243
________________ छाया : मदनार्ता सा यान्ति अनिमेष - नयनाभ्यां पुलकिता तावत् । यावदुद्यान-तरुभि-रन्तरिता दृष्टि - मार्गात् ।। १४३ ॥ अर्थ :- मदनथी पीडाति जती अनिमेष - नयनोवड़े ने जोवाई नेटलीवारमां उद्यानना वृक्षो वच्चे आववाथी दृष्टि-मार्गथी तेणी दूर थई । हिन्दी अनुवाद :- मदन से पीड़ित अनिमेष - नयनों द्वारा वह दिख रही थी तभी उद्यान के वृक्षों के बीच में आने से वह भी नयनों से ओझल हो गई । गाहा : वोलीण - दंसणाए तीए मह माणसम्मि संतावो । दुव्विसहो संजाओ समकं अइदीह - सासेहिं ।। १४४।। छाया : व्यतीत-दर्शनया तस्या मम मानसे संतापः । दुः विसहः संजातः समयं अतिदीर्घ श्वासैः ।।१४४।। अर्थ :- तेणीना दर्शन नही थतां मारा मनमां अत्यंत दुःसह संताप थयो अने साथे साथे ते वखते श्वासपण जोश जोशथी चालवा लाग्या । और साथ : हिन्दी अनुवाद उनका दर्शन न होने से मेरे दिल में दुःसह संताप हुआ ही उस समय श्वास भी जोर-जोर से चलने लगी। गाहा : अह भाइ भाणुवेगो गच्छामो निय- गिहम्मि अम्हे वि । एवंति मए भणिए समागया दोवि गेहम्मि ।। १४५।। छाया : अथ भणति भानुवेगो गच्छामः निज गृहे आवामपि । एवमिति मया भणिते समागतौ द्वावपि गृहे ।।१४५। अर्थ :- हवे भानुवेग कहे छे “आपणे आपणा घरे जइए, “हा” ए प्रमाणे मारावड़े कहेवाये छते अमे बन्ने घरे गया। हिन्दी अनुवाद :- भानुवेग कहता है “फिलहाल हम अपने घर चलेंगे। मेरे "हां" कहने पर हम दोनों घर चले गये। गाहा : तत्तो अहमारूढो उवरिम- भूमीए तत्थ सयणीए । पासुत्तो उवविट्ठो मह पासे भाणुवेगोवि ।। १४६ ।। छाया : ततोऽहमारूढ उपरितन- भूमौ तत्र शय्यायाम् । प्रसुप्त उपविष्टो मम पार्श्वे भानुवेगोऽपि । । १४६ ।। Jain Education International 100 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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