Book Title: Sramana 2005 01
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 252
________________ गाहा : तं दठूण एसा जाया निष्फंद-लोयणा सहसा । आसत्ता तव्वयणे आलेक्ख-गयव्व निच्चेट्ठा।।१७२।। छाया : तं दृष्ट्वा एषा जाता निष्पंद-लोचना सहसा । आसक्ता तद्-वदनेऽऽलिख्य-गतेव निश्चेष्टा ।।१७२।। अर्थ :- तेने जोइने आ सहसा निष्पंद लोचनवाळी थई। तेना मुखपर आसक्त, चित्रमा दोरेलानी जेम निश्चेष्ट थई! । हिन्दी अनुवाद :- उसको देखकर कनकमाला सहसा निष्पंद लोचनवाली हो गई, उसके मुख पर आसक्ति चित्र में चित्रित किसी वस्तु की तरह निश्चेष्ट हो गई। गाहा : सव्वंगिओ इमीए अणिमिस-दिट्ठीए जोइओ स युवा । न य तेण इमा दिट्ठा कोउगवक्खित्त-चित्तेण ।।१७३।। छाया: सर्वाङ्गीणेऽमया अनिमिष-दृष्ट्या दृष्टः स युवा। न च तेन इमा दृष्टा कौतुक व्यक्षिप्त-चित्तेन ।।१७३।। अर्थ :- अनिमेष दृष्टि द्वारा आना वड़े सर्वाङ्गी ते युवा जोवायो परंतु कौतुकथी खेंचायेला चित्तवाळा तेना वड़े आ न जोवाई। हिन्दी अनुवाद :- इसके द्वारा अपलक नयनों से वह युवक देखा गया किन्तु कौतुक देखने में तल्लीन उस युवक ने इसे (कनकमाला की) नहीं देखा। गाहा : तो तस्स नयण-गोयरमपावमाणा सलज्ज-मुह-कमला। दोहग्ग-दूसियं पिव अत्ताणं मन्नमाणव्व ।।१७४।। किं-किंपि चिंतिऊणं भणइ सहीओ! इमम्मि चूय-दुमे । कीलामो ताव खणं बंधिय अंदोलयं अम्हे ।।१७५।। छाया: ततस्तस्य-नयन-गोचरमप्राप्यमाना स-लज्ज-मुखकमला । दौर्भाग्य-दूषितमिवात्मानं मन्यमानेव ||१७४।। किं किमपि चिंतयित्वा भणति सखि! अस्मिन् चूत-द्रुमे । क्रीडामः तावत् क्षणं बद्भवा आन्दोलकं वयम् ||१७५।। अर्थ :- तेथी तेना नयनना विषयने प्राप्त नहीं करती लज्जायुक्त मुखकमलवाळी पोताने दौर्भाग्यथी दूषित जाणे मानती होय तेम कांड 109 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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