Book Title: Sramana 2005 01
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 253
________________ पण विचारीने कहयु हे सखि ! चालो आपणे आ आम्रवृक्ष नीचे हिंचको बांधीने रमीट! ते वखते ज.. हिन्दी अनुवाद : - अत: उससे आंखे चार न होने के कारण लज्जायुक्त मुखवाली स्वयं को दुर्भाग्य से दूषित मानती हुई कुछ सोचकर कहने लगी - हे सखि। चलो, हम इस आम्रवृक्ष के नीचे झूला बांधकर खेलेंगे, उसी समय... गाहा : एवं ताहिं भणिए तहेव संपाडियम्मि एसावि । गुरु-सद्देण सहीओ आसन्नाओवि वाहरइ।।१७६।। छाया: एवं ताभ्यां भणिते तथैव संपातिते एषाऽपि । गुरु-शब्देन सखी रासन्नतरपि व्याहरति ।।१७६।। अर्थ :- तेना कहेला प्रमाणे कराये छते अने सखीओ नजीक होवा छतां पण मोटा अवाज वड़े बोले छे। हिन्दी अनुवाद :- उसकी आज्ञा प्रमाण होने पर भी, और सखियों के पास होने पर भी ऊँची-ऊँची आवाज में बोलने लगी। गाहा : जइ एसो मह सदं सोऊणं संमुहं पलोएज्जा । होञ्जामि ता कयत्था इइ आसाए तडिज्जती ।।१७७।। छाया : यदि एषो मम शब्दं श्रुत्वा सम्मुखं प्रलोकयेत् । भविष्यामि ततः कृतार्था इति आशया ताडयन्ति ।। १७७।। अर्थ :- जो आ मारा शब्दने सांभळीने कदाच मारी सामे जोवे तो पण हुं कृतार्थ थईश ए प्रमाणे नी आशाथी पीडाति हती। हिन्दी अनुवाद :- यदि वह मेरे शब्द को सुनकर शायद मेरी ओर देखे तो भी मैं कृतार्थ हो जाऊंगी, ऐसा सोचकर वह दुःखी हो रही थी। गाहा : तं पेक्खिऊण य मए परिहास- वसेण जंपियं एयं । आसन्नपि सहि-जणं उच्चुच्चं कीस वाहरसि? ।। १७८।। छाया : तं प्रेक्ष्य च मया परिहास-वशेन जल्पितं एतद् । आसनमपि सखि-जन-मुच्चमुच्चं कस्मात् व्याहरसि ? ||१७८।। . 110 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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