Book Title: Sramana 1998 01
Author(s): Ashokkumar Singh, Shivprasad, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 29
________________ २६ श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९८ १२. दुल्लहे खलु माणुसे भवे, चिरकालेण वि सव्वपाणिणं। गाढा य विवाग कम्मणो, समयं गोयम! मा पमायए।। वही १०/४ 83. Jainism more than any other creed gives absolute religious independence and freedom to man. Nothing can intervene between actions which we do and the fruits there of. Once done they become our masters and must furctify. As my independence is great. So my responsibility is coextensive with it. I can live as I like; but my choice is irrevocable and I can not escape the consequences of it. Outlines of Jainism, p.3-4 १४. कोहो पीइं पणासेइ, माणो विणयनासणो। माया मित्ताणि नासेइ, लोभो सव्वविणासणो।। दशवैकालिक, संपा० - मधुकर मुनि, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, ८/३८ १५. सुवण्ण-रूप्पस्स उ पव्वयाभवे सियाहु केलाससमा असंख्या। नरस्स लुद्धस्स नतेहिं, किंचि इच्छाउ आगाससमा अणन्तिया।। उत्तराध्ययन-९/४८ १६. असंविभागी अचियत्ते। वही-१७/११ १७. नो खलु वयं देवाणुप्पिया! अत्थिभावं नत्थि त्ति वदामो, नत्थिभावं अत्थि त्ति वदामो अम्हे णं देवाणुप्पिया! सव्वं अत्थिभावं अत्थि त्ति वदामों. सव्वं नत्थिभावं नत्थी त्ति वदामो। व्याख्याप्रज्ञप्ति, संपा०- मधुकर मुनि, जिनागम ग्रंथमाला, ग्रंथांक- १८; आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर; १९८३ ७/१०/६/२ १८. सव्वे पाणा, सव्वे भूया, सव्वे जीवा,सव्वे सत्ता, न हंतव्वा, न अज्जावेयव्वा, न परिघितव्वा, न परियावेयव्वा, न उद्देवेयव्वा, एस धम्मे सुद्धे। आचारांगसूत्र- संपा०- मधुकर मुनि, जिनागम ग्रंथमाला, ग्रंथांक- १; आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, १९८०; १/४/१ १९. एवं खलु नाणिणो सारं जं न हिंसइ किंचण। अहिंसा समयं चेव एतावंतं वियाणिया।। सूत्रकृतांग- संपा०- मधुकर मुनि, जिनागम ग्रंथमाला, ग्रंथमाला-९, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, १९८२; १/ १/४/१० २०. करेमि भंते! सामाइयं सव्वं सावज्जं जोगं पच्चक्खमि जावज्जीवाए, तिविहं तिविहेणं-मणेणं वायाए, काएणं न करेमि, न कारवेमि, करंतंपि अन्नं न समणुजाणामि। तस्स भंते! पडिक्कमामि, निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। आवश्यकसूत्र संपा०- मधुकर मुनि, १/१ २१. एसा सा भगवई अहिंसा जा सा भीयाण विव सरणं, पक्खीणं विव

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