Book Title: Sramana 1998 01
Author(s): Ashokkumar Singh, Shivprasad, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 125
________________ १२४ श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९८ शुभारम्भ हाल ही में हुआ है। हम इसके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं साथ ही इसे बहुजन हिताय और बहुजन सुखाय बनाने का आग्रह भी करते हैं। पत्रिका का मुद्रण कार्य निर्दोष एवं आवरण आकर्षक है। डॉ० जयकृष्ण त्रिपाठी पूर्णकाम - तृप्त दशा-सम्यक तप- संकलनकर्ता- डॉ० सुरेशचंद्र सोभागचंद झवेरी, प्रकाशक- श्री नवदर्शन पब्लिक चेरिटेबल ट्रस्ट, पार्श्वनगर कॉम्प्लेक्स, जैन पाठशाला, सगरामपुरा- सूरत- २, प्रथम संस्करण संवत् २०५३, पृ०- ५२, आकार-डिमाई, पेपर बैक। जीवो अनादिमलिनो मोहान्धोऽयं च हेतुना येन। शुध्यति तत्तस्य हितं तच्च तपस्तच्च विज्ञानम् ।। "अर्थात् आत्मा जिन-जिन कारणों से शुद्ध होती है उसी में उसका हित है। उसी का नाम तप है और उसी का नाम विज्ञान है।" इस प्रकार जीवदया के प्रेमी सुश्रावक डॉ० सुरेशचंद्र झवेरी ने प्रस्तुत पुस्तक में जीवनोपयोगी तथ्यों को एकत्रित कर इसे महत्त्वपूर्ण बनाया है। पुस्तक पठनीय एवं संग्रहणीय है। पुस्तक की साज-सज्जा आकर्षक एवं मुद्रण कार्य निर्दोष है। डॉ० जयकृष्ण त्रिपाठी विद्याधर से विद्यासागर, लेखक- कविरत्न सुरेश सरल (जबलपुर), प्रकाशक- वीर विद्या संघ गुजरात, बी/२ संभवनाथ एपार्टमेन्ट, बरवरिया कालोनी, उस्मानपुरा, अहमदाबाद-१३, द्वितीय संस्करण पृ०- संख्या १३६+५=१४१, मूल्य१२ (बारह) रूपये। प्रस्तुत पुस्तक गुरुदेव आचार्य विद्यासागर जी महाराज के जीवन से सम्बन्धित सामग्रियों का संकलन है। प्रस्तुत रचना विद्याधर की कहानी से प्रारम्भ होकर विद्यासागर की कहानी तक जाती है। विद्यासागर जो सचमुच विद्या के सागर हैं, के जीवनवृत्त को एक सूत्र में बांधना एक कठिन कार्य है, क्योंकि सागर को यदि कोई चाहे कि मैं मट्ठी में बाँध लूँ तो यह शायद उसका दिवास्वप्न होगा। लेकिन उस दिवास्वप्न को कुछ हद तक साकार करने का प्रयत्न कविवर श्री सुरेश जी ने किया है, जो सराहनीय है। पुस्तक पढ़ने पर ऐसा प्रतीत होता है कि प्रत्येक घटना हमारे सामने चलचित्र की भांति स्पष्ट हो रही है और हम उसका साक्षात् अनुभव कर रहे हैं। इस रचना में आचार्य श्री के प्रारम्भिक जीवन अर्थात् गर्भावस्था से लेकर मुनि दीक्षा तक के जीवन

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