Book Title: Sramana 1998 01
Author(s): Ashokkumar Singh, Shivprasad, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
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९८ श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९८ कवित्त- गुरु महिमा
गुरु बिन ज्ञान, ज्ञान बिन संजम, संजम बिन मनि पद नहीं आवत मुनि पदवी बिन, कर्म न नासत, कर्म सहेत, शिव सुख नहीं पावत शिव बिन चौरासी में डोलत, चौरासी में दुख अनंता, जन्म जरा मृतु दुख ही पावत। कहत चिरंजी गुरु बिन संगत, भर्म न जावत। भर्म ही जीव को, जगत रूलावत। ॥२२॥
दोहा
गुरु चिंतामणि रत्न है, जो मागे सो देत।
गुरु बिन सिष' कुजस लहे, माली बिन ज्यों खेत।।२३।। सवैया
आत्मा की शक्ति साधी, ज्ञान कला दूनी जागी गुरु के प्रसंग सब, आकुलता जात है।। सांची ही जा बात करे, झूठो पंथ परहरे भैदज्ञान ही को पाय, जिनराज गण गाय है।। जिनलिंग मुद्रा धारि प्रग्रहरे सब दुर हारि, आत्मा की शक्ति भारि, सुकल ही ध्यान ध्यायो है असे अणीगार करो, भविदधि पार
कहत चिरंजी निरख, सीस ही झुकायो है।।२४॥ सवैया- नये की महत्ता
धर्म के धरनहार, आत्मा के सारे काज भर्म तिम्र नासबे को, खगरे की समान है। नेचे और बिहारनय ताके षट् शशिभेद इनहों के ज्ञाता भय, नय प्रवन है। नय वे ही जाने, सोइ समगित धारि, नय को लगाय, सब वस्तु ही पछानी है।
जैन धर्म स्याद्वाद, जामें हैं अनंत ज्ञान २. परिग्रह ३. खगः= सूर्यः (संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश: आप्टे पृ० ३२१) ४. निश्चय और व्यवहार नया