Book Title: Sramana 1998 01
Author(s): Ashokkumar Singh, Shivprasad, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
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मुनिराज वन्दना बत्तीसी वीतराग ज्ञान बिन, छोरों' की कहानी है।।२५॥ दोहा- यथार्थज्ञान
अध्यात्म ध्यान को जो, ग्रह होय यथार्थ ज्ञान।
मोक्षपंथ प्रघट करे, ज्ञान शक्ति हिय धार।।२६।। अरिल:- शीलगुण सार
भोग भुजंग समान मुनि जानत हि नित प्रत, भुजंग हरे इस भव प्राण, ये भव-भव दुख देत हैं। असे मन में बिचार, सील रतन मन आदरें। सील ही के प्रताप, इंद्र-चंद्र-खगरे वंदन करें।।२७।।
दोहा
मन बच तीजी काय, तीनु जोग मिलायके।
धरे सील गुण सार, आत्म सुध विचारके।।२८।। सवैया- तीन ऋतुओं में तपश्चरण का वर्णन
सीत ही की मास आवे, पानी जब जम जावे। सीत ही के मारे जीव, व्याकुल ही थाय है। केइ घर माहि जाय, केइ पावक के पास आय। केइ गर्म वस्त्र ही को धार, सीत ही निवारि है। बनही के वृक्ष दाहे, सब द्रव्य टंट पाय सीत ही की बाय चले, काया कंपाय है। ओसि हेगी सीत मास, ताही के मझार मुनी तीरनी के तीर, ध्यान मेरु की समान है।।२९।। रवि की तप्त भारि, किरण ही जो डोडी धारि जेठ मास होय जारि, घम' तेज ही पडत है। अडा चिल छोड जाय, मृगस्याम होय जाय वृक्ष सब सूक जाय, बाड बडाउन चलत है। गरमी की रुत भारि, जाने सब नर-नारी
सब ही को दुख देत, मानु पावक पडत है। १. बालकों को सुनाई जानी वाली कहानी अर्थात् खेल-खेल में मन बहलाने वाली काल्पनिक कहानी
२. भोग विषय ३. सूर्य
४. धूप