Book Title: Sramana 1998 01
Author(s): Ashokkumar Singh, Shivprasad, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
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मुनिराज वन्दना बत्तीसी श्री आदिनाथाय नमः॥
अथ वैराग शतक लिख्यते। आदिनाथ स्तुति-(अरिलः)
आदि अंत गुणखान, आदि अवतार हो। आदि धर्मकरतार नाभिराय कुल चंद हो। अरि कर्म को नास, परम सुख धाम हो।
कहत चिरंजीलाल, जगत सिंगार हो।।१।। महावीर स्तुति-(सवैया ३१)
तिसला जी के नंदन, जगत सब वंदन, भर्म तिम्र नासबे को, खग' की समान है। गर्भ ही आय नाथ, इन्द्र विचारि, प्रभु सेव करो भारी, मोरो सुभ काज है। तीन ही अवध धारि, बंदे सब नर-नारी छप्पन कुमारि मिल, नृत्य ही करत हैं। सिद्धार्थजी के नंद कुल, चंद अरिबिंद,
कहत चिरंजी नित, वंदना करत है।।२।। साधु स्तुति-सवैया
एक ही स्वरूप जान, दूजे राग-द्वेष टाल, तीजै तीन रत्न धार, चार ही कषाय परहारी है। पंच महाव्रत धार, छह काया की प्रीत पाल, सात ही जो नय जान, आठ मद हारि है। नोइ बाड़ सील पाल, दस जति धर्म धार, ग्यारह प्रतिमा को धार, बारा भावना उचारि है। कहत चिरंजी लाल, करो भवदधि पार जैसे अणगार ताको, वंदना हमारी है।।३।। यह संसार ही असार जानते जो सब ग्रहभार आत्म अभ्यासी है। दया दिल माहि धरै, झूठ ही ने परहरे अदत्त नहीं लेत, सीलव्रत धारि है। प्रग्ररे सब दूर त्याग, गहो निज भेदज्ञान जथा जिनलिंग धार, वन ही के वासि है।
कहत चिरंजीबाल, जैसे मुनिराज सार, १. खगः = सूर्यः (संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश, आप्टे पृ० ३२१) २. परिग्रह