Book Title: Sramana 1998 01
Author(s): Ashokkumar Singh, Shivprasad, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
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कीर्तिकौमुदी में प्रयुक्त छन्द
प्रतितटघटितोर्मिघातजातप्रसृमरफेनकदम्बकच्छलेन ।
हेरहसितसितद्युतिं स्वकीर्तिं दिशि दिशि कन्दलयत्ययं तडागः।।७९।।
मालिनी " - ( ननमयययुतेयं मालिनी भोगिलोकैः । )
जिसके चारों चरणों में क्रमशः नगण, नगण, मगण, यगण, यगण हों तथा आठ और सात अक्षरों यति हो, उसको मालिनी छन्द कहते हैं । यथा ११
अलघुलहरिलिप्त व्योमभागे तडागे,
तरलतुहिनपिण्डापाण्डुडिण्डीरदम्भात् ।
तरुणतरणितापव्यापदापन्नमुच्चैरिह,
विहरति ताराचक्रवालं विशालम् ॥ ८० ॥
८५
शार्दूलविक्रीडित १२ (सूर्याश्वर्मसजस्तातः सगुरवः शार्दूलविक्रीडितम् ||
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अर्थात् जिसमें मगण, सगण, जगण, सगण और दो तगण तथा अन्त में एक गुरु हो और बारह, सात पर यति हो तो वहाँ शार्दूलविक्रीडित छन्द होता है । १३ जैसे—
एकत्र स्फुटदब्जराजजिरजस बभ्रुकृतः सुभ्रुवां, प्रभ्रश्यत्कुचकुम्भकुकुमरसैरन्यत्र रक्तीकृतः । अन्यत्र स्मितनीलनीरजलदलच्छायेन नीलीकृत:,
श्रेयः सिन्धुरवर्णकम्बलधुरां धत्ते सरः शेखर ॥ ८१ ॥
प्रस्तुत श्लोक के प्रथम चरण में- राजजिरजसा के स्थान पर राजिरजसा पाठ होना चाहिए। 'ज' से छन्द भङ्ग होता है और अर्थ में भी बाधा आती है।
द्वितीय सर्ग "नरेन्द्रवंशवर्णन" में ११५ श्लोक हैं। इसके प्रारम्भ के ८१ श्लोक अनुष्टुभ् में, अठारह श्लोक (८२ से ९९ ) उपजाति में, तीन (१०० से १०२) इन्द्रवज्रा में, बारह (१०३ ११४) वसन्ततिलका में और अन्तिम ११५वाँ श्लोक
मालिनी छन्द में है ।
इस सर्ग में प्रयुक्त छन्दों में से वसन्ततिलका छन्द को छोड़कर दूसरे छन्दों का लक्षण प्रथम सर्ग के विवरण में दिया गया है। इसका लक्षण एवं कीर्तिकौमुदी के अनुसार उदाहरण निम्नवत है
वसन्ततिलक १४ - (ज्ञेयं वसन्ततिलकं तभजा जगौ गः । )
जिसके चारों चरणों में क्रमश: तगण, भगण, जगण, जगण और दो गुरु वर्ण हों उसको वसन्ततिलका छन्द कहते हैं। जैसे