Book Title: Sramana 1998 01
Author(s): Ashokkumar Singh, Shivprasad, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
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८४ श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९८ तृतीय चरण का सप्तम वर्ण गुरु और द्वितीय और चतुर्थ चरण का लघु होता है। शेष वर्ण या तो लघु या गुरु होते हैं।
उदाहरण
श्रिये सन्तु सतामेते, चिरं चातुर्भुजा भुजाः । यामिका इव धर्मस्य, चत्वारः स्फुरदायुधाः ।।१।। हरप्रासादसन्दोहमनोहरमिदं सरः । राजते नगरं तच्च, राजहंसैरलङ्कृताम् ।।७६॥
उपेन्द्रवज्रा (उपेन्द्रवज्राजतजास्ततो गौ) इसके प्रत्येक चरण में क्रमश: जगण, तगण और जगण के पश्चात् दो गुरु होते हैं।
उदाहरण
सशङ्खचक्रः प्रथितप्रभूतावतारशाली कमलाभिरामः । स एष कासारशिरोवतंस: कंसपहर्तुः प्रतिमां बिभर्ति ।।७७।।
उपजाति - (अनन्तरोदीरितलक्ष्मभाजौ। पादौ यदीयावुपजातयस्ता:।।) अर्थात् जिसमें इन्द्रवज्रा और उपेन्द्रवज्रा का लक्षण मिला हो, उसका नाम उपजाति छन्द है। इन्द्रवज्रा छन्द का लक्षण होता है- “स्यादिन्द्रवज्रा जतजास्ततो गौ" अर्थात् जिसके प्रत्येक चरण में दो तगण, एक जगण और दो गुरु हों तो उसको इन्द्रवज्रा कहते हैं।
उदाहरण
उपेन्द्रवज्रा
इन्द्रवज्रा न मानसे माद्यति मानसं में, पम्पा सम्पादयति प्रमोदम्। अच्छोदमच्छोइन्द्रवज्रादकमष्यसारं, सरोवरे राजति सिद्धभर्तुः।।७८।। इन्द्रवज्रा
उपेन्द्रवज्रा इस श्लोक में प्रथम और चतुर्थ चरण उपेन्द्रवज्रा में होने और द्वितीय और तृतीय चरण इन्द्रवज्रा में होने से इसमें उपजाति छन्द है।
पुष्पिताया - (अयुजिनयुगरेफतो यकारो। युजि च नजौ जरगाश्च पुष्पिताग्रा।।)
यदि विषम पादों में दो नगणों से परे एक रगण, एक यगण हो और सम पादों में एक नगण, दो जगण, एक रगण और अन्त में एक गुरु हो तो वह छन्द पुष्पिताग्रा कहा जाता है। जैसे