Book Title: Sramana 1998 01
Author(s): Ashokkumar Singh, Shivprasad, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
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५८ श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९८ ही निराशा होगी व वर्तमान में अप्रिय स्थिति होने पर दुःख होगा या अपराध भाव होगा। ३. बदलने वाले परिचय की अपूर्ण समझ से तनाव
उदाहरण के रूप में हम एक ऐसे व्यक्ति की कल्पना करें जो अपना परिचय एक अच्छे वैज्ञानिक के रूप में मानता है। जब तक इसी मान्यता के अनुसार उसके कार्य होते जाएं व समाज भी उसको वैज्ञानिक मानता रहे तब तक तो सब ठीक चल सकता है, किन्तु जब एक के बाद एक परिस्थितियां, स्वास्थ्य के कारण या पारिवारिक कारण से या राजनीति के कारण से ऐसी होती रहें कि वह वैज्ञानिक कार्य न कर सके, तब उसको बहत परेशानी होगी। उसकी परेशानी का मूल कारण यह होगा कि उसके “मैं वैज्ञानिक हूँ" वाले परिचय का अन्त हो रहा है। इसके विपरीत कोई व्यक्ति वैज्ञानिक कार्य तो करता रहे किन्तु अपना अस्तित्व (identity) इस रूप में न माने यानी इसे अपना अस्थायी या बदलता हआ परिचय ही माने तो उसे विपरीत परिस्थिति का सामना करने में बहुत कम कठिनाई होगी। कोई आश्चर्य नहीं कि ऐसा व्यक्ति मानसिक तनाव की कमी के कारण बहुत अच्छे वैज्ञानिक का कार्य कर सके। यही बात अपने आपको बड़े परिवार वाला या धनवान या अच्छा खिलाड़ी या कुशल राजनीतिज्ञ या श्रेष्ठ व्यापारी या बढ़िया अभिनेता आदि के रूप में ही अपना अस्तित्व मानने में लागू होती है। बदलने वाले परिचय को बदलने वाला परिचय मानने में तनाव अल्प होता है।
यहां एक प्रश्न उपस्थित होता है- कोई व्यक्ति अच्छा खिलाड़ी है व उसे अच्छे खिलाड़ी के रूप में पूरे विश्व में सम्मान मिल चुका है व मिल रहा है। वह अब उम्र के कारण खेल से रिटायर हो गया है किन्तु अब भी वह अपने आपको प्रसिद्ध खिलाड़ी के रूप में मानते हुए ही प्रसन्न रहता है। यानी अब वह खिलाड़ी नहीं है यह स्वीकार करते हए भी खिलाड़ी की स्मृतियों के आधार पर ही वर्तमान में प्रसन्न है। ऐसे व्यक्ति को बदलने वाले परिचय के आधार पर अपना परिचय या अस्तित्व मान लेने में क्या परेशानी हो सकती है? यही प्रश्न भूतपूर्व राष्ट्रपति, भूतपूर्व शासकीय अधिकारी आदि पर भी लागू हो सकता है। इसी प्रश्न को आगे बढ़ाते हुए यह भी कहा जा सकता है कि कोई अपना परिचय अच्छे धनी के रूप में माने व पूरे जीवन में उसे धन की कमी नहीं रही है या नहीं रहने वाली हो तो उसे अपना परिचय स्थायी रूप से धनी ही मान लेने में क्या हानि है?
इस प्रश्न का उत्तर प्राप्त करने हेतु हम यह विचार कर सकते हैं कि यदि एक भूतपूर्व खिलाड़ी अपना परिचय एक प्रसिद्ध खिलाड़ी के रूप में मानता था व अब भी वह प्रसिद्ध है तो उसको यश में बदलाव महसूस नहीं होगा। फलत: उसकी इस प्रसिद्धि से जुड़ी हुई प्रसन्नता में अन्तर नहीं आयेगा। खेलना उसने चाहे बन्द कर दिया है किन्तु अच्छे खिलाड़ी के रूप में उसकी प्रसिद्धि बन्द नहीं हुई है। अत: प्रसिद्धि की भूख शान्त