Book Title: Sramana 1998 01
Author(s): Ashokkumar Singh, Shivprasad, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 65
________________ ६२ श्रमण / जनवरी-मार्च / १९९८ देखिय सुनिय गुनिय मन माहीं, मायाकृत परमारथ नाहीं । । इन पंक्तियों से स्पष्ट होता है कि समस्त योग, वियोग, भलाई-बुराई, कर्म, आदि परमार्थ नहीं हैं । आधुनिक अमरीकी मनोवैज्ञानिक लूई हे लिखती हैं - ८ "I am now perfect, whole and complete. I will always be perfect. whole and complete. " अर्थात् मैं परिपूर्ण हूँ एवं सदैव परिपूर्ण रहूँगा ( रहूँगी ) । अमरीकी लेखक डाक्टर डेविड बर्न एक मनोवैज्ञानिक एवं मनोचिकित्सक हैं व अत्यन्त निराश व्यक्तियों की चिकित्सा करने के विशेषज्ञ हैं। कई व्यक्तियों की आत्महत्या करने की मनोदशा समझकर उनकी मनोचिकित्सा डॉ० बर्न ने की है व इस दिशा में बहुत अनुसंधान कार्य भी किया है। उनकी मनोचिकित्सा का भी प्रमुख मंत्र यही है कि स्वयं की दृष्टि में स्वयं का मूल्य (self worth) सदैव समान रहना चाहिए। उनके अनुसार हमारी दृष्टि ऐसी होनी चाहिए कि हमारा मूल्य हमारी निगाहों में कभी भी न तो कम हो और न ही ज्यादा, सदैव स्थिर रहे । ९ अमरीकी मनोवैज्ञानिक डॉ० वेन डायर जो कि विश्व में सर्वाधिक विक्रय वाली एक पुस्तक, Your erroneous zones, के लेखक हैं अपनी नवीन पुस्तक (शीर्षक: You'll see it when you believe it) के प्रारंभिक अध्याय में निम्नांकित पंक्तियां१" लिखते हैं: "The principles is this book start with the premise that you are a soul with a body, rather than a body with a soul. That you are not a human being having spiritual experience, but rather a spiritual being having a human experience." इन पंक्तियों का भावार्थ यह है कि आप आत्मा हैं जिसके साथ शरीर लगा हुआ है, न कि शरीर हैं जिसमें आत्मा स्थित है। आप चैतन्यता अनुभव करने वाले मनुष्य न होकर, स्वयं चैतन्य तत्त्व हैं। इसी पुस्तक के अन्तिम अध्याय के निम्नांकित ११ शब्द भी ध्यान देने योग्य हैं "It is like having a guardian angel or a loving observer as a part of your consciousness, a companion that you are always having compassionate silent

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