Book Title: Sramana 1998 01
Author(s): Ashokkumar Singh, Shivprasad, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 81
________________ ८० श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९८ ९३, १०२, ३०२. मुनि जयन्तविजय, संपा०, अर्बुदप्राचीनजैनलेखसंदोह, लेखांक १८८. मुनि कांतिसागर, संपा० शत्रुजयवैभव, कुशल पुष्प ४, जयपुर १९९० ई०स०, लेखांक ७६, ९१. मुनि जयन्तविजय, पूर्वोक्त, लेखांक १८८. ऐतिहासिकजैनकाव्यसंग्रह, पृष्ठ-८१. .Jinaratnakosha, P-442. महो० विनयसागर, खरतरगच्छीयसाहित्यसूची, पृष्ठ-२१. पूरनचन्द नाहर, जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक १७१, २३९, २५६, २७०. वही, भाग १, लेखांक १९, ४८, ५२, १५४, १६१, २१६, २८१, २८४, ४१८, ४२३, ६५०, ६६२; वही, भाग २, लेखांक ११५७; भाग ३, लेखांक २१२८, २४२१. प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक ३६४, ४७९. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ५९६, ५९७, ६१३, ६२८, ७३४, ७३९, ७९९, ८५२, ८८०, ८९४, ९२०. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ७७, ११५९; भाग २, लेखांक १४८, १९७, ३१३, ४१०, ४२२, ४४३, ४८७, ६०५, ६९०, ७०७, ७१९, ९८५. .. शत्रुजयवैभव, लेखांक २१५, २३१. Jinaratnakosha, P. 33. मुनिजयन्तविजय, पूर्वोक्त, लेखांक ४१५. जैनधातुप्रतिमालेख, लेखांक २५८. ऐतिहासिकजैनकाव्यसंग्रह, पृष्ठ-७६. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ९३५, ९६५. जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ५६७. A.P. Shah, Ed., Catalogue of Sanskrit and Prakrit Manuscripts: Muni Punyavijayaji's Collection, Part ?L.D. Series No. Ahmedabad 196 A. D. PP. 448-49, No. 2727. २६-२७. जैनगूर्जरकविओ, नवीन संस्करण, भाग १, पृष्ठ-२३९ और आगे. २८. साहित्यसूची, पृष्ठ-२६. ऐतिहासिकजैनकाव्यसंग्रह, पृष्ठ-७६. ३०. साहित्यसूची, पृष्ठ-६५. २९.

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