Book Title: Sramana 1998 01
Author(s): Ashokkumar Singh, Shivprasad, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
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७४ श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९८
जिनचन्द्रसूरि जिनोदयसूरि जिनराजसूरि जिनवर्धनसूरि (वि० सं० १४६९ अथवा
वि०सं० १४७४ में खरतरगच्छ
की पिप्पलकशाखा के प्रवर्तक) जिनचन्द्रसूरि 'प्रथम' जिनसागरसूरि जिनसुन्दरसूरि जिनहर्षसूरि जिनचन्द्रसूरि 'द्वितीय' जिनशीलसूरि जिनकीर्तिसूरि जिनसिंहसूरि जिनचन्द्रसूरि 'तृतीय' राजसुन्दर (वि०सं० १६६९/ई० स०
१६१३ में खरतरगच्छपिप्पलकशाखा की गुरुपट्टावलीचउपई
के रचनाकार) उक्त पट्टावली में उल्लिखित पिप्पलकशाखा के मुनिजनों का जो क्रम ऊपर दिया गया है उसका इस शाखा से सम्बद्ध ग्रन्थप्रशस्तियों एवं अभिलेखीय साक्ष्यों से भी समर्थन होने से पिप्पलकशाखा की एकमात्र उपलब्ध इस पट्टावली की प्रामाणिकता निर्विवाद रूप से सिद्ध होती है।
आचार्य जिनरत्नसूरि के पट्टधर जिनवर्धमानसूरि (आचार्य पद वि०सं० १६८९) हुए। जिन्होंने वि०सं० १७१०/ई०स० १६५४ में धन्नाऋषिचौपाई२२ की रचना की। इसकी प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा की लम्बी गुर्वावली न देते हुए केवल शाखाप्रवर्तक जिनवर्धनसूरि तथा अपने प्रगुरु जिनचन्द्रसूरि एवं गुरु