Book Title: Sramana 1998 01
Author(s): Ashokkumar Singh, Shivprasad, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
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जैन एवं बौद्ध ध्यान पद्धति: एक अनुशीलन शंकराचार्य ने बृहदारण्यकोपनिषद् में ऐसी ही विप्रतिपति उपस्थित की है। कुछ विद्वानों का कहना है कि परमात्मा ही हिरण्यगर्भ है, तो कुछ उन्हें संसारी कहते हैं।९ भाष्यकार सायण के अनुसार हिरण्यगर्भ देहधारी हैं।१° ऋषभ जब गर्भ में थे, तब कुबेर ने हिरण्य की वृष्टि की थी, इसलिए उन्हें हिरण्यगर्भ भी कहा जाता है। जिसका उल्लेख महापुराण में मिलता है।११
सैषा हिरण्यमयी वृष्टिः धनेशेन निपातिता। विभो! हिरण्यगर्भत्वमिव बोधयितु जगत् ।।
ऐतिहासिक काल में ध्यान-परम्परा के स्रोत सांख्य, शैव, तन्त्र, नाथ-सम्प्रदाय, जैन और बौद्ध दर्शन में उपलब्ध हैं। सांख्य दर्शन की साधना-पद्धति का अविकल रूप महर्षि पतञ्जलि के योग दर्शन (ई०पू० दूसरी शताब्दी की रचना) में मिलता है। जैन दर्शन का साधना-मार्ग आचाराङ्ग (ई०पू० पाँचवीं शताब्दी की रचना) में प्राप्त होता है। बौद्ध दर्शन का साधना-मार्ग अभिधम्मकोश और विशुद्धिमग्ग (ई० सन् पांचवीं शताब्दी) में उपलब्ध है।
__ पातञ्जल योग दर्शन सांख्य सम्मत ध्यान-पद्धति का प्रतिनिधि ग्रन्थ है। जैन साधना-पद्धति और विशेषकर ध्यान-पद्धति का मौलिक ग्रन्थ आचाराङ्ग है। उसी प्रकार अभिधम्मकोश और विशुद्धिमग्ग बौद्ध सम्मत ध्यानपद्धति के आधारभूत ग्रन्थ हैं। भगवान पार्श्व ध्यान-पद्धति के उन्नायक थे, उनकी ध्यान-पद्धति जैन-शासन
और बौद्ध शासन, दोनों में ही संक्रमित हुई है।१२ आचाराङ्ग और विशुद्धिमग्गदोनों में ही विपश्यना ध्यान के बारे में वर्णन मिलता है। वर्तमान में ध्यान की बहुत सारी पद्धतियां प्रचलित हैं, परन्तु प्रस्तुत आलेख का उद्देश्य जैन ध्यान-पद्धति एवं बौद्ध ध्यान-पद्धति के अन्तर्गत प्रेक्षाध्यान और विपश्यना ध्यान-प्रक्रिया का तुलनात्मक विवेचन प्रस्तुत करना है। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
प्रेक्षाध्यानः- वि०सं० २०१७ में युवाचार्य महाप्रज्ञ (वर्तमान आचार्य) के मन में प्रश्न उपस्थित हआ कि क्या जैन साधकों की भी कोई ध्यान-पद्धति है? इसी प्रश्न के समाधान हेतु तेरापंथ के नवम आचार्य तुलसी ने उन्हें प्रेरित कर आगमों से इसे खोज निकालने के लिए मार्ग दर्शन दिया। २०१८ में आचार्य तुलसी ने 'मनोऽनुशासनम्' पुस्तक को लिखा, जिसमें जैन साधना-पद्धति के कुछ रहस्य सामने आये। इसी क्रम में क्रमश: 'चेतना का उर्ध्वारोहण', 'महावीर की साधना का रहस्य', 'तुम अनन्त शक्ति के स्रोत हो' आदि पुस्तकें जैन योग-साधना के सम्बन्ध में प्रकाश में आयीं।१३ कई शताब्दियों से ध्यान की जो परम्परा विच्छिन्न हो गयी थी उसके लिए