Book Title: Sramana 1998 01
Author(s): Ashokkumar Singh, Shivprasad, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
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|इसकी उपयोगिता क्या?
लोक व्यवहार इस प्रकार के उत्तर से ही | चलता है।
|इसकी उपयोगिता क्या? | इस परिचय से हमें ज्ञान हो सकता है कि हमारी
आत्मा का विकास कितना हुआ है। यदि तनाव ग्रस्त एवं दु:खी हैं तो इसका अर्थ यह हुआ कि आत्मा का विकास अल्प हुआ है। स्थायी परिचय को न समझने के कारण बदलते हुए परिचय को ही अपना (स्थायी) परिचय मान लेना दुःख एवं तनावों का कारण है।
इसकी उपयोगिता क्या? यह शाश्वत वास्तविकता है जिसकी स्वीकृति एवं समझ में सुख एवं अस्वीकृति में दुःख है। इस सुख या. आनन्द की प्राप्ति हेतु इन्द्रियों की आवश्यकता नहीं होती है।
सावधानी (१) आवश्यकतानुसार पर्याप्त एवं सही
परिचय की समझ से व्यक्ति की
प्रमाणिकता बनती है। (२) दुनियां के सामने हम कई रूपों में
होते हैं किन्तु विभिन्न रूपों में रहते हुए भी हमारे असली या स्थायी परिचय को नहीं भूलना चाहिए।
सावधानी
सावधानी | हम स्वयं हमारे सामने भी विभिन्न रूपों जिस प्रकार निवास स्थान का स्थायी पता बताने हेतु | में बदलते हुए आते हैं। किन्तु इन सभी मकान का रंग बताना आवश्यक नहीं होता है, रंग विभिन्न रूपों में बदले हुए भी हमारे का उल्लेख गौण किया जाता है, इसका अर्थ यह | असली या स्थायी परिचय को नहीं भूलना | | नहीं होता है कि मकान रंगहीन है। इसी प्रकार चाहिए।
आत्मा के स्थायी परिचय के आधार पर अपने को समझने हेतु बदलते हुए परिचय या लौकिक परिचय को गौण करने की आवश्यकता है, नकारने की
आवश्यकता