Book Title: Sramana 1998 01
Author(s): Ashokkumar Singh, Shivprasad, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
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श्रमण
जैन दर्शन और कबीरः एक तुलनात्मक अध्ययन
-डॉ० साध्वी मंजुश्री
सम्पूर्ण भारतीय दर्शनों को दो भागों में विभक्त किया जाता रहा है- वैदिक दर्शन और अवैदिक दर्शन। वेद की परम्परा में विश्वास रखने वाले न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा और वेदान्त ये छ: दर्शन वैदिक दर्शन हैं। वेद को प्रमाण न मानने वाले तीन अवैदिक दर्शन हैं- जैन, बौद्ध और चार्वाक।
___हरिभद्रसूरि के 'षड्दर्शनसमुच्चय' की टीका में गुणरत्नसूरि ने कहा है- कि आत्मा, संसार (जन्म-मरण), मोक्ष और मोक्ष के मार्ग में जो विश्वास करता है, वही आस्तिक है। अगर इस दृष्टि से देखा जाय तो केवल चार्वाक दर्शन को तथा बौद्ध दर्शन के केवल उस सम्प्रदाय को, जो आत्मा का अस्तित्व नहीं मानता, नास्तिक कहा जा सकता है। अन्य सभी भारतीय दर्शन जिनमें जैनदर्शन और बौद्ध दर्शन भी सम्मिलित हैं, आत्मा को मानते हैं, आत्मा के आवागमन को मानते हैं, मोक्ष और मोक्ष के उपाय को भी मानते हैं। फिर, जैनदर्शन को नास्तिक क्यों कहा जाए? जैन दर्शन उतना ही आस्तिक या नास्तिक है, जितना अन्य कोई हिन्दू दर्शन।
___कुछ विद्वानों ने जैन और बौद्ध दर्शन अर्थात् श्रमण-संस्कृति को वैदिक संस्कृति दर्शन की शाखा के रूप में स्वीकार किया है, जो उचित नहीं है। क्योंकि ऐतिहासिक तथा आधुनिक शोध के आधार पर यह सिद्ध हो चुका है कि श्रमण संस्कृति का अस्तित्व वैदिक संस्कृति से भी पुराना है। जैन एवं बौद्धमत एक ही हैं अथवा जैन धर्म बौद्ध धर्म की एक शाखा मात्र है, ये भ्रममूलक धारणाएँ भी अब खण्डित हो चुकी हैं।
जैन परम्परा के अनुसार, जैनदर्शन का उद्भव महावीर से नहीं, अपित प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव से हुआ। महावीर तो २४वें तीर्थंकर थे, जो भगवान् ऋषभदेव की इस प्राचीनतम परम्परा के सुधारक या पुनरुद्धारक मात्र थे, इस प्रकार के पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध हैं, जो भगवान् ऋषभदेव को प्राग्वैदिक़ सिद्ध करते हैं और जिनके आधार पर कहा जा सकता है कि भगवान् ऋषभदेव को संसार के प्राचीनतम ग्रंथ वेदों में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। श्रीमद्भागवत से भी इस बात का समर्थन होता है कि ऋषभदेव जैनमत के संस्थापक थे।