Book Title: Sramana 1998 01
Author(s): Ashokkumar Singh, Shivprasad, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 28
________________ २५ जैन दर्शन का मानववादी दृष्टिकोण इस प्रकार जैन दर्शन और मानववाद (Humanism) दोनों ही ईश्वर की सत्ता को स्वीकार न करके मानव-अस्तित्व और उसके पुरुषार्थ में विश्वास करते हैं। दोनों ही मानते हैं कि मानव में ईश्वरत्व को प्राप्त करने की क्षमता निहित है। उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है जैन दर्शन एक मानववादी दर्शन है। जिस मानववादी दर्शन का सूत्रपात पाश्चात्य जगत् में प्रोटागोरस ने ई०पू० पाँचवी-छठी शती में मैन इज दि मेजर ऑफ ऑल थिंग्स (Man is the measure of all things) कहकर किया था, वह मानववादी दर्शन हमारी भारतीय परम्परा के जैन दर्शन में उसके पूर्व से विद्यमान था, जो हमारे लिए गौरव का विषय है। संदर्भ f. Humanism in Philosophy is opposed to Naturalism and Absolutism; it disignates the philosophic attitude which regards the interpratation of human experience as the primary concern of philosophizing, and asserts the adequacy of human knowledge for this perpose. Encyclopaedia of Ethics & Religion Vol-VI, P. 830. २. The Philosophy of Humanism, p. 8 3. Encyclopaedia of Humanities (Philosophy), p.97 ४. Ibid ५. God and Secularity, P. 103-104 ६. Philosopher's and Philosophies, P. 165-166 ७. जयोदय महाकाव्य परिशीलन, संपा० डॉ० रमेशचन्द्र जैन, दिगम्बर जैर समाज, मदनगंज, किशनगढ़, १९९५, पृ०-३३ ८. जैन, बौद्ध और गीता के आचार दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन, डॉ० सागरमल जैन, राजस्थान प्राकृत भारती संस्थान, जयपुर, भाग १, १९८२, पृ०१४० शांतिपर्व (महाभारत), संपा- पं० रामनारायण दत्त पाण्डेय, गीताप्रेस, गोरखपुर २९९/२० १०. किच्चे मणुस्स पटिलामो। धम्मपद, संपा- पं० रामनारायण दत्त पाण्डेय, गीताप्रेस, गोरखपुर १८२ ११. कम्माणं तु पहाणाए, आणुपुव्वी कयाइउ। जीवा सोहिमणुप्पत्ता आययंति मणुस्सयं।। उत्तराध्ययन, संपा- मधुकर मुनि जिनागम ग्रंथमाला, ग्रंथांक- १९, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, १९९४; ३/७

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