Book Title: Sramana 1997 01 Author(s): Ashok Kumar Singh Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi View full book textPage 6
________________ तनाव : कारण एवं निवारण परिस्थिति जो हमारी सामान्य जीवन धारा को अस्त-व्यस्त कर दे, उसे हम 'तनाव उत्पन्न करने वाली' परिस्थिति कह सकते हैं। तनाव से उत्पन्न शारीरिक स्थितियाँ पाश्चात्य चिन्तकों चार्ल्सवर्थ और नाथन के अनुसार तनाव के परिणामस्वरूप व्यक्ति की निम्नलिखित स्थितियाँ देखी जाती हैं १. मन्द पाचन क्रिया (Digestion Slows)- तनाव के कारण पाचन क्रिया मन्द होने से रक्त का प्रवाह मांसपेशियों तथा मस्तिष्क की और बढ़ने लगता है, जो अपच की स्थिति से भी ज्यादा खतरनाक है। २. तीव्र श्वांस (Breathing gets faster)- तनाव की स्थिति में श्वांस की गति तेज हो जाती है, क्योंकि मांस पेशियों को अधिक आक्सीजन की जरूरत होती है। ३. हृदय गति का बढ़ना (Heart speeds up)- तनाव के कारण हृदय की गति बढ़ जाती है, साथ ही रक्तचाप भी बढ़ता है। ४.पसीना आना (Perspiration increases)- तनाव की स्थिति में व्यक्ति के शरीर से अधिक मात्रा में पसीना आने लगता है। ५. मांसपेशियों में कड़ापन (Muscles tense)- तनाव के कारण मांसपेशियां प्रमुख कार्य के लिए कड़ी हो जाती हैं। ६. रासायनिक प्रभाव (Chemicals action)- तनाव की स्थिति में रासायनिक पदार्थ रक्त में मिलकर उसका थक्का जमा देते हैं । ७. शर्करा तथा वसा (Sugars and Fats)- तनाव की वजह से रक्त में शर्करा तथा वसा की मात्रा बढ़ जाती है जो कि तीव्र शक्ति उत्पत्र कर उसे कार्य करने के लिए साधन का काम करती है । युवाचार्य महाप्रज्ञ ने भी इस सम्बन्ध में कहा है कि तनाव की निरन्तर स्थिति बने रहने पर शारीरिक गड़बड़ी उत्पन्न हो सकती है। इससे शरीर में स्थित दबाव तन्त्र निरन्तर सक्रिय रहता है। दबाव तन्त्र के अन्तर्गत हाइपोथेलेमस (Hypothelemus), पीयूष प्रन्थि (Pituitary gland), एड्रीनल ग्रन्थियां (Adrenal glands) और स्वायत नाड़ी संस्थान का अनुकम्पी विभाग (Sympathetic part of Auto Nervous System) आते हैं। जिसके कारण शरीर में घटित होने वाली शारीरिक स्थितियाँ निम्न प्रकार की हो जाती हैं-१९ १. पाचन क्रिया मन्द या बिल्कुल स्थगित हो जाती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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