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माँ की पुकार | ६७
नहीं कर पायेगा तो अनशन, कायोत्सर्ग आदि कैसे कर पायेगा ? उसे स्वयं ही गोचरी करने दो ।"
पितामुनि अन्य मुनियों के इस कथन को हँसकर टाल देते | कहते
"यह अभी बच्चा ही तो है । बहुत सुखों से पला है । समय पड़ने पर सब कर लेगा ।"
समय बीतता चला गया । पितामुनि आयुष्य पूर्ण कर परलोक सिधार गए । पुत्रमुनि अरणिक का सहारा चला गया। अब तो उन्हें अकेले ही गोचरी के लिए जाना था । मुनि जीवन में भी कष्ट - पीड़ा अथवा परीषह का अनुभव न करने वाले अरणिक मुनि के लिए उपाश्रय से बाहर निकलना पर्वतारोहण से कम कठिन न था । लेकिन जव श्रमण बन ही गए तो श्रमणाचार का पालन तो करना ही पड़ेगा। गुरु से आज्ञा ले मुनि अरणिक गोचरी के लिए चल दिये ।
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भीषण गरमी । झुलसा देने वाली धूप । हर कदम पर ऐसा मालूम पड़ता था मानो दहकते अंगारे पैरों के नीचे आ गये हों । ऐसी भीषण गरमी में अरणिक मुनि गोचरी के लिए बढ़े चले जा रहे हैं । पसीने से उनका शरीर तर हो. रहा है। भूख के मारे चलना वैसे ही मुश्किल हो रहा है, ऊपर से यह गरमी कहर ढा रही है । प्यास के मारे कण्ठ सूखा जा रहा है । जैसे-तैसे मुनि वस्ती में पहुंच तो गए, पर
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