Book Title: Sona aur Sugandh
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 156
________________ शूल को त्रिशूल | १४७ "हमें भूल ही गए। हमारी बात मानने का कमाल देख लिया । पहले ही दिन लिफाफा मिल गया।" ब्राह्मण पुरोहित के चरणों में गिर पड़ा। बोला "पुरोहितजी ! आपकी कृपा से ही सब कुछ मिला है। मुझे जो भी इनाम मिलेगा, आधा आपको दक्षिणा में पुरोहित झल्लाया "मूर्ख ! तू बड़ा कृतघ्न है। पहले दिन का पूरा इनाम हमें दक्षिणा में दे।” ब्राह्मण सकुचाया। बोला "पुरोहितजी ! महीनों की हाजिरी के बाद मुझे इनाम मिला है और आप सब-का-सब दक्षिणा में लेंगे ?" पुरोहित ने डाँटा "लेकिन यह मिला तो मेरी कृपा से है। अगर नहीं देगा तो........।" । ब्राह्मण ने बन्द लिफाफा पुरोहित के हाथ पर रख दिया । पुरोहित ने कुछ विचारकर लिफाफे के बदले बीस रुपये उस ब्राह्मण को दे दिये। ब्राह्मण बोस रुपये लेकर अपने घर चला गया और पुरोहित खजांची के पास पहुंचा । खजांची ने लिफाफा खोला । उसमें जो कागज था, उस पर लिखा था Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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