Book Title: Sona aur Sugandh
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 163
________________ १५४ / सोना और सुगन्धं दृश्य भी अभिनीत किया। कुटी हुई मूज लेकर रस्सी बटने बैठ गया। भूत ने उससे भी आकर पूछा--- “सेठ, यह रस्सी क्यों बट रहे हो ?" रटे-रटाये स्वर में सेठ ने कहा"तुमको बांधूगा।" सेठ की बात सुनकर भूत ने ऐसा ठहाका मारा कि जंगल गूज उठा। सेठ के घर वाले डर गए और सेठ पर बरस पड़े "हमें यहाँ कहाँ मरवाने ले आये ? अब हम यहाँ नहीं रुकेंगे । यहाँ तो कोई भूत मालूम पड़ता है-कैसी डरावनी हँसी थी ?" भूत ने सेठ से कहा "क्या इसी बल पर मुझे बाँधना चाहते थे ? सेठ ! तुम पहले सेठ की नकल कर रहे हो। सूत से भूत बँधता है। पहले अपने परिवार को एकता के सूत्र में बांधो, तब मुझे बाँधने की सोचना।" सेठ को भूत का कथन सत्य लगा। जब मैं अपने परिजनों से उत्तर चलने के लिए कहता हूँ तो ये पश्चिम चलते हैं । मैं भला भूत को कैसे बाँधूगा? अपना-सा मुह लेकर सेठ घर आ गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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