Book Title: Sona aur Sugandh
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 173
________________ १६४ | सोना और सुगन्ध कर्णफूल पहनने वाली को देखेँ । तुम चारों जो भी चाहो अपनी-अपनी पसन्द लिखकर भेज दो ।" रानियों ने अपने-अपने निजी पत्रों में अपनी-अपनी पसन्द की चीजें लिखीं और पत्रवाहक द्वारा पत्र राजा के पास भेज दिये । राजा के आगमन पर नगरी नववधू- सी सज गई । राजा ने अन्तःपुर में चारों रानियों को उनकी पसन्द की चीजें बाँटीं । बड़ी रानी अपने हीरकहार की दिव्य छटा को देखती ही रह गई । दूसरी रानी कर्णफूलों को पाकर फूली नहीं समाई । तीसरी रानी नूपुरों को पाकर निहाल हो गई । राजा ने चौथी रानी को वह सब दिया, जो वह अपनी पसन्द से अपने साथ लाया था। चौथी रानी भी भाव-विभोर हो गई । 1 रानियों में ईर्ष्या भड़की। सौतिया डाह साकार हुआ। सबकी दृष्टि चौथी रानी के उपहारों पर टिकी थी। बड़ी रानी की भौंहें तिरछी हुईं "आज पता चला कि आपके हृदय में कितना वैषम्य है ।" राजा मुस्करा दिया तो दूसरी रानी ने ताना कसा" पुरुषों की मुस्कराहट में भी कपटभाव होता है ।" तीसरी रानी ने चुनौती दी - " एक पति के द्वारा वैषम्य शायद हम सह लेतीं, पर राजा द्वारा हुआ यह अन्याय हमें बर्दाश्त नहीं । हमें Jain Education International For Private & Personal Use Only ww-wal www.jainelibrary.org

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