Book Title: Sona aur Sugandh
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 176
________________ सामुदायिकता की भावना | १६७ दिये । एक व्यक्ति ने सोचा, 'इतने बड़े दूध से भरे तालाब में एक लोटा पानी क्या मालूम पड़ेगा। मैं तो एक लोटा पानी ही छोड़कर आता हूँ । X X X प्रातःकाल राजा और मन्त्री दोनों ने पानी से लवालव भरे तालाब को देखा । राजा ने मन्त्री से कहा "मन्त्री ! मेरी आज्ञा का उल्लंघन हुआ है । सभी ने दूध की जगह पानी क्यों डाला ? " मन्त्री ने कहा "नहीं राजन् ! यह सामुदायिकता की भावना है । जो एक ने सोचा, वही सबने सोचा । हर व्यक्ति यही सोच रहा था, सब तो दूध डालेंगे, मेरा एक लोटा पानी क्या मालूम पड़ेगा । परिणाम आपके सामने है ।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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