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सुर-असुर का भेद
पुराने समय में एक प्रतापी, बुद्धिमान और दानवीर राजा था। वह नित्य ही याचकों को दान दिया करता था। महीने के अन्त में प्रत्येक पूर्णिमा को वह देव-दानवों को भी अपने हाथ से परोस कर भोजन कराता था। सुरअसुर-दोनों ही उसके आतिथ्य-प्रेम से सन्तुष्ट रहते थे।
देव-दानवों की शत्रुता शाश्वत है। दानव कभी भी देवताओं का उत्कर्ष नहीं देख पाते । एक बार सभी असुरों ने विचार किया कि यह दानी राजा वैसे तो देव-दानवदोनों को ही समान रूप से भोजन कराता है, पर यह पहले देवताओं को खिलाता है और बाद में हमें भोजन कराता है । इसका यही मतलब निकलता है कि वह देवों को दानवों से श्रेष्ठ मानता है। लेकिन हम भी देवों से कम नहीं है । अब आगे से हम देवों से पहले भोजन करेंगे। ऐसा विचार कर सभी असुर दानवीर राजा के पास पहुँचे । दानवों के प्रतिनिधि एक दानव ने राजा से कहा
"राजा ! तु यह कहता था कि मेरे लिए देव-दानव
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