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१५२ | सोना और सुगन्ध ..
उक्त वट वृक्ष पर एक भूत रहता था। भूत ने खट-पट देखी तो घबराया- मेरे एकान्तवास में यह बाधा कहाँ से आई ? भूत एक-एक करके सभी के पास गया और बोला"आप लोग मेरे रहन-सहन में खलल न डालें । यहाँ से भाग जाओ, वरना एक-एक को खा जाऊँगा।" .. सभी ने सरोष कहा
"तू देखता नहीं, हम एक नहीं अनेक हैं। हम अनेक होकर भी एक हैं और एक होकर भी अनेक हैं। अगर तुझे कुछ परेशानी है तो हमारे सेठजी से जाकर कह।" . भूत सेठ के पास पहुंचा और बोला
“सेठ ये सब लोग रस्सियाँ बट रहे हैं। रस्सियाँ किस काम आएँगी ?"
सेठ ने कहा"तुझे बाँधूगा।"
भूत थर-थर काँपने लगा। उसे विश्वास हो गया कि ये सब मिलकर मुझे अवश्य बाँध लेंगे । इन सबमें सूत (एकता) है । सूत (एकता) से भूत बँध जाता है।
खुशामद-भरे स्वर में भूत बोला
"मैंने आपका क्या बिगाड़ा है ? आप मुझे क्यों बाँधना चाहते हैं ?"
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