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उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मीः | १३१ व्यापारी अपने पुत्र के युक्ति-युक्त कथन को सुनकर आनन्द-विभोर हो गया। अपने व्यापार का कार्यभार उसने अपने इसी छोटे पुत्र को सौंप दिया। शेष तीनों पुत्र थैली लेकर ही सन्तुष्ट हो गए। किसी ने ठीक ही कहा है
"मेरे दाएँ हाथ में पुरुषार्थ है और बाएँ हाथ में सफलता-कृतं मे दक्षिणे हस्ते, जयो मे सव्य आहितः ।"
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