Book Title: Sona aur Sugandh
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 147
________________ १३८ | सोना और सुगन्ध “राजन् ! आपके सोने और मेरे पत्थर में क्या अन्तर है ? अनुपयुक्त रूप से रखा सोना और पत्थर एक ही बात है। आपका पत्थर पीले रंग का है, मेरा सोना लाल रंग का है। प्रजा पर कर-भार बढ़ाकर सोना गाड़ना और पहाड़ों से मँगाकर पत्थर गाड़ना एक ही बात है। मेरा पत्थर भी किसी के काम नहीं आयेगा-जमीन में पड़ा रहेगा । आपका खजाना भी बढ़ता जायेगा-न आपके काम में आयेगा, न प्रजा के काम में। ऐसे खजाने का बताइए क्या उपयोग है ?" राजा की आँखें खुल गई। उसने तुरन्त कर वसूली रोक दी और खजाने का धन प्रजाहित में लगा दिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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