Book Title: Sona aur Sugandh
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 148
________________ २३ अपराध एक : दण्ड चार एक न्यायप्रिय राजा के राज्य में गश्त के सिपाहियों ने चार चोरों को चोरी करते हुए रंगे हाथ पकड़ लिया। रातभर चारों बन्दीगृह में रहे । प्रातःकाल चारों को राजा के सामने प्रस्तुत किया गया। हथकड़ी पहने चारों एक पंक्ति में राजा के सम्मुख खड़े थे। राजा के आदेश पर पहले चोर की हथकड़ी खोली गई। राजा ने चोर को अपने निकट बुलाया और कहा "तुमने चोरी की ? बुरी वात है।" इतना कह राजा ने पहले चोर को मुक्त कर दिया। इसी तरह दूसरा चोर बुलाया और कहा___"चोरी करते शर्म नहीं आई ? दूसरों का माल हड़पते तुम्हें जरा भी शर्म नहीं आती? रात का चोर दिन में साहूकार और शरीफ वनकर रहे, यह मनुष्य जीवन की कैसी विडम्बना है।" इतनी भर्त्सना कर राजा ने दूसरे चोर को भी छोड़ दिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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