Book Title: Sona aur Sugandh
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 150
________________ अपराध एक : दण्ड चार | १४१ 1 किसी की आत्मा को कष्ट मिलता है और किसी के शरीर को । किसी को बात की चोट लगती है, किसी को लात की । सुधरने वाला हल्की-सी चोट से भी सुधर जाता है और न सुधरने वाला बार-बार दण्ड पाकर भी अपराध करना नहीं छोड़ता । " अपनी बात कहकर राजा मौन हो गया । मन्त्री की समझ में कुछ नहीं आया । उसने फिर पूछा "लेकिन महाराज ! अपराध और दण्ड का कोई-नकोई विधान भी तो होता है। आज के न्याय में जो असमानता थी, उसका कारण समझ में नहीं आया । " राजा ने कहा "मन्त्री ! कारण भी समझ जाओगे । इसके लिए तुम्हें छह महीने की प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। छह महीने बाद सब बातें तुम्हारे सामने स्पष्ट हो जायेंगी ।" ― x X छह महीने बाद राजा ने मन्त्री से कहा " महामन्त्री ! आज से छह महीने पहले जो चार चोर पकड़े गये थे, उन सबके पते आरक्षी विभाग में सुरक्षित हैं । तुम उन चारों का पता लगाकर दो कि उनका क्या हाल है ।" "जो आज्ञा !" कहकर मन्त्री चला गया । पूरी जाँचपड़ताल कर मन्त्री ने बताया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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