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पाप का घड़ा | ११७ तुम्हें दस-बीस रुपये दे दिए होंगे। लेकिन अब तो धन ही उसके लिए सब कुछ है । मानो धन लेकर ही स्वर्ग सिधारेगा। अरे भाई, मैंने एक बार गहने दे दिये; फिर भी दुबारा माँगता है।"
एक झूठ को बार-बार कहने पर वह सत्य-जैसा भासित होता है । ईर्ष्यालु व्यक्ति के बार-बार कहने पर कुछ लोग सोचने लगे, 'हो न हो, यह गरीब व्यक्ति ही ठीक हो। क्या पता, धनवान की नीयत बिगड़ गई हो।'
धनी सेठ ने सोचा, 'गहने तो हाथ से गये ही, जनता में मेरी बदनामी भी हुई। यदि मैं चुप बैठ गया तो सब यही समझेंगे कि वास्तव में मैं बेईमान हैं। अत: पंचों से न्याय माँगने में क्या हानि है ?'
नियत समय पर पंचायत जुड़ी। सभी जनता झूठेसच्चे का निर्णय देखने के लिए एकत्र थी। बस, ईर्ष्यालु व्यक्ति का ही इन्तजार था। काफी प्रतीक्षा के बाद हाथ में एक घड़ा लिए हुए ईर्ष्यालु व्यक्ति आया। आते ही विलम्ब के लिए उसने क्षमा माँगी।
पंचों ने दोनों पक्षों की बात सुनी। दोनों के कथन में दृढ़ता थी। पंचों ने ईर्ष्यालु व्यक्ति से कहा
"यदि तुमने वास्तव में धनी सेठ को गहने लौटा दिये
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