Book Title: Sona aur Sugandh
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 136
________________ सत्य-असत्य की मिलावट | १२७ “पिताजी ! आपने भी कमाल किया था । एक कनस्तर यों ही घेर रखा था। एक भाव की दो चीजों को मैंने एक कर दिया । " पिता ने कहा “बस, बेटा बस । झगड़े के कारण का पता लग गया । मूर्ख की मूर्खता तो मैंने बहुत देखी, पर आज मूर्ख की बुद्धिमानी भी देखली । ... अब तू इतना और कर कि एक भाव की इन दोनों मिली हुई चीजों को घूरे पर डाल आ ।" जीवन में सत्य का उपयोग तो हैं ही, कभी-कभी असत्य भी उपयोगी प्रतीत होता है, मगर सत्य-असत्य की मिलावट करने वाला दोनों को ही अनुपयोगी बना देता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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