Book Title: Sona aur Sugandh
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 112
________________ मां की पुकार | १०३ का क्षय करना चाहता हूँ। यह तरीका तो बहुत लम्वा और धीरे-धीरे चलने का है।" गुरु ने साश्चर्य पूछा---- "कौन-सी विधि अपनाओगे, वत्स ?" मुनि अरणिक उसी समय दहकती प्रस्तर शिला पर लेट गए ? ऊपर से सूर्य आग बरसा रहा था। तदनन्तर मुनि अरणिक ने कहा-"गुरुजी ! मुझे तो यही राह पसन्द है । आज मुझे कहावत याद आ रही है-सौ चोट सुनार की, एक लुहार की।" ___गुरु और साध्वी माता अरणिक की ओर देखते ही रह गए। मुनि अरणिक ने अनशन शुरू कर दिया और तप्त-शिला पर लेटकर कर्मों का क्षय करने लगे। थोड़े ही समय में उन्होंने पाप-मल को जला दिया और शरीर त्यागकर स्वर्गलोक की प्राप्ति की। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि छोटी-सी उम्र में ही एक ऐसे सुकुमार साधु ने स्वर्ग प्राप्ति कैसे कर ली, जो एक दिन की गोचरी में ही कुम्हला गया था और सांसारिक जीवन की ओर लौट पड़ा था । वास्तविकता यह है कि ऐसा दृढ़प्रतिज्ञ व्यक्ति, जो प्राण देने के लिए तैयार है, ब्रह्माण्ड तक को हाथों पर उठा सकता है। मुनि अरणिक ऐसे ही दृढ़प्रतिज्ञ व्यक्ति थे। उनकी यह दृढ़ता दीक्षा लेते समय भी परिलक्षित हुई थी और अनशन तथा शिला-तप के समय भी देखी गई। Jain Education International al For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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