Book Title: Smruti Sandarbh Part 02
Author(s): Maharshi
Publisher: Nag Publishers

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Page 8
________________ [ ३ ] अध्याय प्रधानविषय पृष्ठाक १ धर्मोपदेशं तल्लक्षणवर्णनश्च ६२५ "मानुषाणां हितं धर्म वर्तमाने कलौयुगे शौचाचारं यथावच्च वद सत्यवतीसुत !" वतमान कलियुग में मनुष्यमात्र का हित जिससे हो । वह धर्म कहिए और ठीक-ठीक रीति से शौचाचार की रीति भी बतला दीजिये-मृषियों के प्रश्न करने पर व्यासजी ने उत्तर दिया कि कलियुग के सार्वभौम धर्म के विकाश करने में अपने पिता पराशरजी की प्रतिभा शक्ति की सामर्थ्य कही यतः पराशरजी निरन्तर एकान्त बदरिकाश्रम की तपोभूमि में आसीन हैं। तपोमय भूमि में तपस्यारूपी साधन के बिना कलियुग के धर्म, व्यवहार, मर्यादा पद्धति का पर्षदीकरण अवैध सूचित किया ऋषियों ने इस बात पर विचार किया कि कलियुग के मनुष्य किसी धर्म मर्यादा की पर्षद बुलाने की क्षमता नहीं रख सकते हैं यावत् तपोमय जीवन से इन्द्रियों की उपरामता न हो जाय यतः इन्द्रिय भोग विलासिता के जीवनवाले वेद शारूपारंगता प्राप्त करने पर भी धर्म, न्याय विधिको नहीं बना सकते हैं। अतः विधि, नियम रूपी धर्म व्यवहार के लिये

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