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[ ५२ ] अध्याय प्रधानविषय
पृष्ठाङ्क १० करनी और क्या-क्या रत्न उसके किस-किस अंग
प्रत्यंग में लगाने चाहिये उसका वर्णन आया है [१०४-१२१]। कृष्णमृगचर्म के दान का विधान वैशाखी पूर्णिमा और कार्तिक की पूर्णिमा को जो दान किया जाय उसका माहात्म्य दर्शाया है [१२२१४२]। मार्ग दान की विधि [१४३-१४६] । हयगज दानविधि वर्णनम् .
८८१ सुखासन दान का माहात्म्य, रथदान का माहात्म्य, हस्तीदान एवं उसका अलंकार और उसकी दान विधि का उल्लेख तथा अश्वदान का माहात्म्य और रथ दान का वर्णन [१५०-१६६]। कन्यादान का माहात्म्य |१७०
१७१] । पुत्र दान का माहात्म्य [१७२-१७३ । १. भूमिदान वर्णनम् ।
८८३ भूमिदान का माहात्म्य, सब दानों से श्रेष्ठ भूमिदान बताया है। भूमिदान करनेवाला सब पापों से मुक्त हो अनन्त काल तक स्वर्ग में रहता है [१७४२०० ] । स्वर्ण तुला का दान और चांदी की तुला दान का दिग्दर्शन कराया है। गुड़ की तुला, लवण की तुला दान जो स्त्री करे तो
पार्वती के समान सौभाग्यवती रहेगी तथा पुरुष . करे तो प्रद्युम्न के समान तेजस्वी होगा ।