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[ ५६ ] अध्याय प्रधानविषय
पृष्ठात दान का माहात्म्य [३५३-३५४ ] । तुला संक्रान्ति, - मेष संक्रान्ति में प्रयाग में दान का माहात्म्य
[३५५] । मिथुन, कन्या, धनु, मीन संक्रान्ति में भास्कर तीथ में दान का माहात्म्य [३५६-३५८] । अक्षय दान का माहात्म्य [ ३५६] । सूर्य, ब्रह्मा आदि देवों के मन्दिरों का निर्माण तथा जीर्णो
द्वार विधि का माहात्म्य [ ३६०-३६८]। १० कूप तड़ागादि कीर्ति महत्त्ववर्णनम् । ६०१ . कूप बावड़ी तालाव आदि बनाने का माहात्म्य
[३६२-३७४]। पीपल, उदुम्वर, वट, आम, जामुन, निम्ब, खजूर, नारियल आदि भिन्न-भिन्न जाति के वृक्ष लगाने का माहात्म्य [ ३७५-३७८ ] ।
यथा"अश्वत्थमेकं पिचुमन्दमेकं न्यग्रोधमेकं दश चिंचिणीश्च । षट् चम्पकं तालशतत्रयं च पश्चाम्रवृक्ष नरकं न पश्येत् ॥
इतने वृक्षों को लगाने से नरक में नहीं जाते हैं। . लगाये हुए वृक्षों के फल पक्षी जितने दिन खाते हैं उतने दिन स्वर्ग में रहते हैं [ ३७६-३८२] । जितने फूल के वृक्ष लगाता है उतने दिन तक स्वर्ग