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[ ३७ ] . अध्याय प्रधान विषय
पृष्ठाङ्क ६ शौच वर्णनम् ।
७७४ शौचाचार भावशुद्धि के सम्बन्ध ( २१२-२१६ )। स्त्रियों में रमण करनेवाले वित्तपरायण, मिथ्या
वादी, हिंसक की शुद्धि कभी नहीं होती है (२१७) । __ प्रतिग्रह ( दान ) वर्णनम् ।
७७५ मूर्ख को दान देने से दान का फल नहीं होता है । ( २१८-२२१)। दान लेनेवाला मूर्ख और दाता भी नरक में जाता है ( २२२-२२६)। दान पात्र को देना चाहिये इसपर कहा गया है (२२७-२२८) हाथी का दान, घोड़े का दान और नवश्राद्ध का दान लेनेवाला हजार वर्ष तक नर्क में रहता है (२२६-२३१.)। विष्णु की प्रतिमा, पृथिवी, सूर्य की प्रतिमा तथा गाय यह सत्पात्र को देने से दाता को तीन लोक का फल होता है ( २३२ )। भोजन दान के समय पर अच्छे चरित्रवान ब्राह्मणों का सत्कार करना तथा अनाचारी पुरुषों को बिलकुल वर्जित का विधान है (२३३-२३७) । दही, दूध, घी, गंध, पुष्पादि जो अपने को देवे (प्रत्याख्येयं न कहिचित् ) उसे वापस नहीं करना (२३८)।