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[ ४१ ] अध्याय प्रधानविषय
पृष्ठाक धन की प्राप्ति है। आयु, प्रजा, लक्ष्मी और संसार में सम्मान का मूल आचार ही है (३७७ से
समाप्ति)। ७ श्राद्ध वर्णनम् ।
७६१ श्राद्धके समय कौन-कौन हैं उनका निर्देश (१-४)। श्राद्ध में जिनको निमन्त्रण देना निषिद्ध है उनको निमन्त्रित करने का निषेध (५-१४)। श्राद्ध में जिनको निमन्त्रण देना चाहिये और पूजना चाहिये उनका वर्णन (१५-२६) । श्राद्धमें जो ब्राह्मण भोजन करते हैं उनको किस प्रकार रहना चाहिये और उनके यम नियम बताये गये हैं (२७-३२)। श्राद्ध में पत्रावली (३३-३४)। जो निर्धन पुरुष है जिनके पास श्राद्ध करने की सामग्री नहीं है वे जंगल में जाकर हाथ ऊँचाकर रुदन करे और अपने पितरेश्वरों से कहे कि मेरे पास घरमें स्त्री पुत्रादि के अतिरिक्त धन नहीं है मै श्राद्ध किस तरह करूं। इस तरह क्षमा मांग पितृऋण से क्षमा याचना कर सकता है (३४-३७)। जो इतना भी न कर सके वह पितृ-हत्यारा कहा जाता है (३८-३९)। कौन किसका श्राद्ध कर सकता हे इसका निर्णय है, जैसे; अपुत्र की स्त्री भी पति का