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[ ४२ ] अध्याय
प्रधानविषय ७ श्राद्ध कर सकती है; इष्ट परिजन अपने मित्रों का भी
श्राद्ध कर सकते हैं। लड़की का लड़का अर्थात् दौहित्र भी श्राद्ध कर सकता है और पार्वण श्राद्ध का वर्णन आया है। एकोदिष्ट श्राद्ध पुत्र ही अपने पिता और पितामह का कर सकता है (४०-६१)। श्राद्ध में शूद्रान का निषेध और स्त्री को भोजन करना निषेध बताया गया है (६२-८३ ):। एकोद्दिष्ट श्राद्ध का विधान तथा किस किस काल में श्राद्ध करना चाहिये उन कालों का वर्णन । जैसा कुतुप, ( मध्याह्न) रोहिणी, संक्रान्ति अमावास्या, व्यतीपात आदि का है (८४-१०१)। मलमास में भी श्राद्ध कर सकते हैं इसका निर्णय किया गया है और नित्य श्राद्ध का भी निर्णय किया है (१०२-१०५)। श्राद्ध की तिथि का निर्णय, सगोत्र ब्राह्मण को श्राद्ध में भोजन कराने का निषेध (१०६-११६)। वृद्धि श्राद्ध ( नान्दीमुख) शुभ कार्य में जो पितरों का श्राद्ध होता है उनके उपयुक्त जो पात्र है उनका निर्णय, वट वृक्ष की लकड़ी और बिल्वपत्र के पत्ते पर भोजन करने का निषेध वताया है (११७-१२२)। श्राद्ध में कौन पुष्प किसको चढ़ाने चाहिये अथवा नहीं