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[ ४५ ] अध्याय
प्रधानविषय ८ अशौच हो जाये तो उसका जो पहले किये हुए
दानादि सत्कर्म अशुद्ध नहीं होते हैं (२८-५०)। जिन जिन पर सूतक नहीं लगता तथा जिस दशा पर सूतक पातक नहीं लगता उनका वर्णन किया
गया है (५१-६०)। ८ प्रायश्चित्त वर्णनम् ।
.. . ८३५ पापों को क्षालन करने के लिये प्रायश्चित्तों का माहात्म्य और कर्तव्य बताया है [ ६१-७०] । प्रायश्चित्त विधान करनेवाली सभा का संगठन [७१-७७ ]। महापापी के प्रायश्चित्त का वर्णन [७८-१०७]। शराब पीने का प्रायश्चिच [१०८११०]। स्वर्ण की चोरी का प्रायश्चित्त [ १११११३] । मातृगामी का प्रायश्चित्त बताया है [११४-११५]। जिन पापों में चान्द्रायण व्रत किया जाता है उनका वर्णन आया है तथा महापातकियों का प्रायश्चित्त बताया है [११६-१४०] । गोवध के प्रायश्चित्तों का निर्णय और गो के मरने के अगल-अलग कारणों पर भिन्न भिन्न प्रकार के प्रायश्चित्त बताये गये हैं [ १४१-१७१ ]। हाथी, घोड़ा, बैल, गधा इनकी हत्या पर शुद्धि का वर्णन