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[ ४७ ] अध्याय प्रधानविषय
पृष्ठाङ्क ८ बताया है और उसका चान्द्रायण [ २१२-२१३ ] ।
चान्द्रायण और पादकृच्छ्र व्रत का विधान [२१४२१५] । वेश्याओं के साथ रहनेवाला; जो अज्ञात कुलशील हो और चाण्डाल नौकर रखनेवाले को पुनः संस्कार का निर्णय दिया है [२१६-२२१] । अभक्ष्य भक्षण, अपेय पान ( जिसका छूआ पानी नहीं पीना उसके पीने ) करने पर प्रायश्चित्त का विधान बताया गया है [ २२२-२३०]। रजस्खला के सम्पर्क से शुद्धि का विधान [२३१-२४२] । धोबी के स्पर्श से शुद्धि का विधान [२४३] । वर्णक्रम से (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्रादि ) रजस्वला स्त्रियों के गमन करने पर प्रायश्चित्त बताया है [ २४४-२५३ ] । अन्त्यज स्त्री के गमन से प्रायश्चित्त कहा है [ २५४] । गुरुपत्नी आदि के गमन का पाप और उसके प्रायश्चित्त का उल्लेख है [२५५-२६३]। रजस्वला के छुये हुए अन्न खाने का प्रायश्चित्त [२६४-२६६ ]। उन्हीं पापों के प्रायश्चित्तों का विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है [२६७-२७५] । दुःस्वप्न देखने और हजामत (क्षौर) करने पर स्नान की विधि [२७६ ]। सूअर, कुत्ता आदि के छूने पर शुद्धि [ २७७२७६ ] ।