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[ ३६ ] अध्याय प्रधानविषय
पृष्ठाडू ६ है ( १८४ )। पुत्र यदि धर्मज्ञ हो तो पिता को
स्वर्ग गति होती है, अतः पशु-पक्षी भी पुत्र को चाहते हैं ( १८५-१६२)। जो पुत्र गया में पिता
का श्राद्ध करे ( १६३)। पुत्र का कर्तव्य और ... उसका लक्षण बताया है। यथा
जीवतो वाक्यकरणात् क्षयाहे भूरि भोजनात् । गयायां पिण्डदानाच त्रिभिः पुत्रस्य पुत्रता ॥ अर्थात् ये तीन लक्षण जिसमें है उसीमें पुत्रत्व है। जीते जी पिता की आज्ञा पालन, श्राद्ध के दिन ब्राह्मण भोजन करानेवाला और गया में पिण्ड देनेवाला (१६४ १६६)। पिता के लिये वृषोसर्ग (१६७-१६८)। साध्वी स्त्री का लक्षण सास श्वसुर की सेवा करे (५६६)। जहाँतक सन्तानोत्पत्ति का सम्बन्ध है पिता, पुत्र समान
और पुत्री भी वैसी ही ( २०० )। ६ आचार वर्णनम्
७७३ ४० संस्कार, सदाचार की प्रशंसा साथ ही हीनाचार की निन्दा बताई है (२०१-२०७) । मनुष्य को विद्या पढ़ना, शास्त्र पढ़ना, सदाचार पर निर्भर है। आचारहीन मनुष्य कोई कर्म में सफल नहीं होता ह (२०८-२११)।